Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१४
तीर्थंकर चरित्र
पवित्र हैं । वे इस दृष्टि से बाह्य नहीं है । म्लेच्छ लोगों में उत्तम ऐसे निर्दोष महात्माओं को तुम्हारे जैसे दूषित लोगों में रहना उचित नहीं है ।"
इस प्रकार नमुचि को दिया । एक छोटे से साधु द्वारा उसके हृदय में पराजय का डंक, पर उठा और निशाचर के समान गुप्त और चला। किंतु उद्यान के बाहर ही स्थिर हो गया। वह वहाँ से डिंग भी स्तंभित देख कर लोग विस्मित हुए । दुभय हो गया । वह वहाँ से निकल अपना प्रधानमन्त्री बना दिया ।
युक्तिपूर्वक उत्तर दे कर उस छोटे साधु ने पराजित कर थोड़ी ही देर में पराजित हुआ नमुचि स्वस्थान आया । शूल के समान खटक रहा था । वह आधी रात बीतने रूप से उन मुनिजी को मारने के लिए उद्यान की देव-योग से उसके पाँव रुक गए। वह स्थंभित-सा
नहीं सका । प्रातः काल होने पर उसे इस प्रकार नमुचि बड़ा अपमानित हुआ । उसका वहाँ रहना कर हस्तिनापुर आया । युवराज महापद्म ने उसे
महापद्म के राज्य में सिंहबल नाम का एक राजा था । वह बलवान था और उसका दुर्ग सुदृढ़ था । वह अपने दुर्ग से निकल कर आस-पास के प्रदेश में लूट मचा कर अपने दुर्ग में घुस जाता । उसको पकड़ना कठिन हो गया था । नमुचि ने दुर्ग को तोड़ कर उसे पकड़ लिया और महापद्म के सामने उपस्थित कर दिया । इस विकट कार्य की सफलता से प्रसन्न हो कर महापद्म ने नमुचि से इच्छित वस्तु मांगने का आग्रह किया । नमुचि ने कहा--- "स्वामिन् ! आपका अनुग्रह अभी धरोहर के रूप में रहने दीजिए, जब मुझे आवश्यकता होगी तब माँग लूंगा ।"
एक बार महारानी ज्वालादेवी और रानी लक्ष्मीदेवी के परस्पर धार्मिक असहिष्णुता से मनमुटाव हो गया । पद्मोत्तर ने उत्पन्न कलह का निवारण करने के लिए दोनों को शान्त रहने की आज्ञा दी । महारानी ज्वालादेवी को इससे आघात लगा | माता को हुए दुःख से क्षुब्ध हो कर महापद्म, रात्रि के समय गुप्त रूप से राजधानी छोड़ कर निकल गया । वह बन में भटकता हुआ तपस्वी ऋषियों के आश्रम में पहुँच गया । तपस्वियों ने राजकुमार का सत्कार किया। महापद्म उस आश्रम में ही ठहर गया और शांति से रहने लगा । चम्पा नगरी पर अन्य राजा ने चढ़ाई करदी और जीत लिया । वहाँ का राजा जन्मेजय मारा गया । नगर में लूट मची। राजपरिवार निकल भागा। रानी नागवती अपनी पुत्री मदनावली के साथ उसी आश्रम में पहुँची। राजकुमार महापद्म ने राजकुमारी मदनावली को देखा और मोहित हो गया । राजकुमारी भी महापद्म पर आसक्त हो गई ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org