Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चक्रवर्ती महापद्म
भगवान् श्री मुनिसुव्रत स्वामी, तीर्थंकर नामकर्म के अनुसार विचर रहे थे, उस समय 'महापद्म' नाम के नौवें चक्रवर्ती सम्राट हुए। उनका चरित्र इस प्रकार है ।
इस जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह के सुकच्छ नामक विजय में 'श्रीनगर ' नामका समृद्ध नगर था । 'प्रजापाल' नाम का नरेश वहां का शासक था। वे अकस्मात् आकाश से बिजली पड़ती हुई देख कर विरक्त हो गये और समाधिगुप्त नामके मुनिराजश्री के पास निर्ग्रथ-दीक्षा ले ली । वे विशुद्ध साधना करते हुए आयु पूर्ण कर ग्यारहवें बारहवें देवलोक के इन्द्र--— अच्युतेन्द्र ' हुए ।
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिनापुर नाम का नगर था । पद्मोत्तर नाम के नरेश वहाँ राज करते थे । ज्वालादेवी उनकी पटरानी थी। सिंह स्वप्न युक्त गर्भ में आये हुए पुत्र को महारानी ज्वालादेवी ने जन्म दिया । पुत्र का नाम 'विष्णुकुमार' रखा | कालान्तर में बारहवें देवलोक के इन्द्रपद से च्यव कर प्रजापाल मुनि का जीव श्रीज्वालादेवी के गर्भ में आया । महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । पुत्र का नाम 'महापद्म' दिया गया । विष्णुकुमार और महापद्म दोनों सहोदर भ्राता, योग्य वय को प्राप्त होने पर सभी कलाओं में प्रवीण हुए। राजकुमार महापद्म को राजा के उत्तम लक्षणों एवं गुणों से युक्त तथा सर्वभौम सम्राट होने योग्य समझ कर पद्मोत्तर राजा ने उसे युवराज बनाया ।
नमुचि का धर्मद्वेष
उस समय उज्जयिनी नगरी में श्रीवर्मा नाम का राजा था । उनके मन्त्री का नाम 'नमुचि' था । भ. श्रीमुनिसुव्रत स्वामी के शिष्य आचार्य श्रीसुव्रतमुनि उज्जयिनी पधारे । नागरिकजनों का समूह आचार्यश्री को वन्दन करने के लिये उद्यान की ओर जा रहा था । राजा ने जनसमूह को उद्यान की ओर जाता हुआ देख कर नमुचि से पूछा
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इस समय लोगों का झुण्ड उद्यान की ओर क्यों जा रहा है ? इस समय न तो कोई पर्व है, न उत्सव ही, फिर सभी लोग एक ही दिशा में क्यों जा रहे हैं ?"
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'नगर के बाहर कोई जैनाचार्य आये हुए हैं । उनकी वन्दना करने और उपदेश
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