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स्याद्वादसिद्धि
दो जिससे ये टिमटिमाते रहे और जगत्को अपने अस्तित्वका भान कराते हुए प्रकाशपत्र सुझावें ।
समाज में विद्वानोंकी संख्या सैकड़ोंमें है । पर इस ज्ञानयज्ञके होता कितने हैं ? और समाजने बुद्धिपूर्वक कितनों को इस ओर प्रेरित किया ? यह प्रश्न ठंडे दिवसे उद्धारक वृत्तिसे सोचनेका है ? आशा है इस नत्र और स्पष्ट निवेदन पर ध्यान जायगा ।
भारतीय ज्ञानपीठ, काशी २-८-५०
अशुद्ध नेष्यतः (ष्टिता)
सदहेतुकाताचित
अन्यश्चा
वर्णेष
सवस्तत्र
वरणादेतदुपमर्दनकार्यागुणत्वस्यविशेसशीत्य
महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य
J (स० मूर्तिप्रंथमाला भारतीय ज्ञानपीठ)
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शुद्धि-पत्र
शुद्ध नेष्यतः (ते)
सदहेतुकता
चिकचेति
अन्यैश्चा
वर्णेषु
सर्वस्तत्र
वर्णादितदुपमर्दनं कार्या
गुणत्वस्याविशेसंशीत्य
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