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स्याद्वादसिद्धि
उत्कृष्ट कविकी रचना ज्ञात नहीं होते। तीसरे, वादीभसिंहसूरिकी ग्रस्ति देने की प्रकृति और परिणति भी प्रतीत नहीं होती। उनको क्षत्रचडामणिमें भी वह नहीं है और स्याद्वादसिद्धि अपूर्ण है, जिससे उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। अतः उपर्युक्त दोनों पद्य हमें अन्यद्वारा रचित ए, प्रक्षिप्त जान पड़ते हैं और इस लिए प्रोडयदेव बादीमसिंहका जन्म नाम अथवा वास्तव नाम था, यह विचारणीय है। हां, वादीभसिंह का जन्म नाम व असली नाम कोई रहा जरूर होगा। पर वह क्या होगा, इसके साधनका कोई दूसरा पुष्ट प्रमाणा ढूढ़ना चाहिए। (ग) वादिभसिंहकी प्रतिभा और उनकी कृतियां '
आचार्य जिनसेन तथा वादिराज जैसे प्रतिभाशाली विद्वानों एवं समर्थ ग्रन्थ कारोंने प्राचार्य वादीभासिंहकी प्रतिभा और विद्वत्तादि गुणाका समुल्लेख करते हुए उनके प्रति अपना महान् आदरभाव प्रकट किया है और लिखा है कि वे सर्वोत्कृष्ट कवि, श्रेष्ठतम वाग्मी और अद्वितीय गमक थे तथा स्याद्वादविद्याके पारगापी और प्रतिवादियोंके अभिमानचरक एवं प्रभावशाली विद्वान थे और इसलिये वे सबके सम्मान योग्य हैं ? इससे जाना जा सकता है कि प्राचार्य वादोमसिंह एक महान् दार्शनिक, वादी, कवि और दृष्टिसम्पन्न विद्वान थे- उनकी प्रतिभा हवं विद्वत्ता चहुमुखी थी और उन्हें विद्वानों में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त थी।
इनकी तीन कृतियां अब तक उपलब्ध हुई हैं। वे ये हैं१. स्याद्वादसिद्धि- प्रस्तुत ग्रन्थ है। . २. क्षत्रचूचडामणि-यह उच्च कोटिका एक नीति काव्यग्रन्थ है। भारतीय काव्य साहित्य में इस जैसा नीति काव्यग्रन्य
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