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हिन्दी-सारांश
४. क्रमानेकान्तसिद्धि यूर्वोत्तर चित्तक्षणोंमें यदि एक वास्तविक अनुस्यूतपना न हो तो उनमें एक सन्तान स्वीकार नहीं की जा सकती है और सन्तान के अभावमें फलाभाव निश्चित है क्योंकि करनेवाले चित्तक्षणसे फलभोगनेवाला चित्तक्षण भिन्न है और इसलिये एकत्वके बिना 'कर्ताको ही फलप्राप्ति नहीं हो सकती। ___यदि कहा जाय कि 'पूर्व क्षण उन्तर क्षणका कारण है, अतः उसके फलप्राप्ति हो जायगी तो यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि कारणकार्यभाव तो पिता-पुत्रमें भी है और इसलिये पुत्रकी क्रियाका फल पिताको भी प्राप्त होनेका प्रसंग आयेगा।
बौद्ध-पिता-पुत्रमें उपादानोपादेयभाव न होनेसे पुत्रकी क्रियाका फल विताको प्राप्त नहीं हो सकता। किन्तु पूर्वोत्तर क्षणों में तो उपादनोपादेयभाव मौजूद है, अतः उसके फलका अभाव नहीं हो सकता ?
जैन-यह उपादानोपादेयभाव सर्वथा भिन्न पूर्वोत्तर क्षणोंकी तरह पिता-पुत्र में भी क्यों नहीं है, क्योंकि भिन्नता उभयत्र एकसी है। यदि उसमें कथंचिद् अभेद मानें तो जैनपनेका प्रसंग आयेगा, कारण जैनोंने ही कथंचिद् अभेद उनमें स्वीकार किया है, बौद्धोंने नहीं। ___ बौद्ध-पिता-पुत्र में सादृश्य न होनेसे उनमें उपादानोपादेयभाव नहीं है, किन्तु पूर्वोत्तर क्षणों में तो सादृश्य पाया जानेसे उनमें उपादानोपादेयभाव है । अतः उक्त दोष नहीं है ? । जैन-यह कथन भी संगत नहीं है, क्योंकि उक्त क्षणों में सादृश्य मानने पर उनमें उपादानोपादेयभाव नहीं बन सकता। सादृश्यमें तो वह नष्ट ही हो जाता है। वास्तव में सहशता उनमें
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