________________
स्याद्वादसिद्धि ... विषय
कारिका विषय कारिका ३. समवायसे कर्तृत्वा
पनका अभाव ७-८ दिके सद्भावकी आ- ७. आगमसे ईश्वरके शंकापूर्वक विस्तार
वक्तापनकी सिद्धि से समवायका निरा
करनेमें अन्योन्याकरण " ३-३० श्रय दोष ... ४. कर्तृत्वादिको सम- ८. अशरीरी ईश्वरके वायसे अभिन्न
वक्तापनकी तरह स्वीकार करनेपर
शरीरका अभाव ... १० पूर्ववत् उनके
६. अनादिशरीर मानने अभावका प्रसंग ३१-३२ में दोष ... ११ ६. सर्वज्ञामावसिद्धि १-२२ १०. अनादि शरीरके। १. ईश्वर समीचीन वक्ता
सद्भावमें प्रमाणाभाव १२ न होनेसे सवज्ञ
११. सोपाय ईश्वरको वक्ता नहीं है ...
मानने में दोष १३-१६ २. सरागी होनेसे वह
१२ वेदप्रमाणताका पूज्य भी नहीं है ... १ .
खण्डन .. १७-१८ ३. ईश्वरसृष्टि अविचार
१३. प्रभाकर तथा भट्ट पूर्ण होनेसे वह
द्वारा अभिमत नियोगसर्वज्ञ नहीं है .... २-३
भावनारूप वेदार्थ ४. वीतराग सर्वज्ञ ईश्वर
की आलोचना ... १६ पूज्य है ....
१४. अर्थवादको भी वेदार्थ ५. ईश्वरके निरुपायपने
मानने में दोष ... २० का खण्डन .... ५-६ १५. वेद व्याख्यानों में ६. नित्यैकान्तमें अश
नियतार्थका अनिश्चय २१ रीरी ईश्वरके वक्ता- ६. पूर्वोक्तका उपसंहार ... २२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org