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विषय
८. तर्कसे अविनाभाव का निश्चय और अर्थापत्ति के प्रामाण्यका समर्थन
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बनने की आशंका और उसका समा
कारिका
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उसका निराकरण २१-२३
१०. वेदपौरुषेयत्वसिद्धि १-३६ १०. शब्दको पौद्गलिक
१. मीमांसकोंद्वारा सर्वज्ञाभावकी आशंका २. उसका निराकरण
३. पदवाक्यात्मकत्वहेतुद्वारा वेद के पौरुताकी सिद्धि
स्वीकार करनेमें मीमांसकों द्वारा एकश्रोत्रप्रवेशादि दोषों की आशंका और उनका निरकरण २४-२६ ११. अध्ययनपूर्वकत्वहेतु द्वारा वेद में अपौरुयताकी सिद्धि और उसका निराकरण २५-३०
३
४. वर्णनित्यताका खंडन ४-५ ५. प्रत्यभिज्ञासे वर्णोंको नित्य सिद्ध करने में दोषप्रदर्शन ६. वर्णों को नित्य न माननेपर संकेत न
६-१२
१२. अस्मरण हेतु द्वारा अपौरुषेयताकी सिद्धि और उसका
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धान
७. नित्य - व्यापि समान्यका खंडन
स्याद्वादसिद्धि
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१३-१६
८. सादृश्यात्मक सामा
न्यकी सिद्धि और उसी में संकेतकी
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१
१७-१६
विषय
उपपत्ति
६. सादृश्य में संकेत मानने में दोषाशंका और
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कारिका
२०
सविस्तर खंडन ३१-३६
१-२८
११. परतः प्रामाण्यसिद्धि १. मीमांसकोंके स्वतः
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प्रामाण्यवादका
निराकरण और अप्रामाख्यकी तरह परतः प्रामाण्यकी सिद्धि
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