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हिन्दी-सारांश अहन्तके वचन निर्दोष होनेसे प्रमाण हैं और इसलिये वे ही सर्वज्ञ सिद्ध हैं।
8. अर्थापत्तिप्रामाण्यसिद्धि सर्वज्ञको सिद्ध करनेके लिये जो "ज्योतिषशास्त्रादिका उपदेश सर्वज्ञके बिना सम्भव नहीं है। यह अर्थापत्ति प्रमाण दिया गया है उसे मीमांसकोंकी तरह जैन भी प्रमाण मानते हैं, अतः उसे अप्रमाण होने अथवा उसके द्वारा सर्वज्ञ सिद्ध न होनेकी शंका निमूल होजाती है। अथवा, अर्थापत्ति अनुमानरूप ही है। और अनुमान प्रमारण है।
यदि कहा जाय कि अनुमानमें तो दृष्टान्तकी अपेक्षा होती है और उसके अविनाभावका निर्णय दृष्टान्तमें ही होता है किन्तु अर्धापत्तिमें दृष्टान्तकी अपेक्षा नहीं होती और न उसके अविनाभावका निर्णय दृष्टान्तमें होता है अपितु पक्षमें ही होता है, तो यह कहना ठीक नहीं; क्योंकि दोनोंमें कोई भेद नहीं है-दोनों ही जगह अविनाभावका निश्चय पक्षमें ही किया जाता है। सर्व विदित है कि अद्वैतवादियोंके लिये प्रमाणोंका अस्तित्व सिद्ध करनेके लिये जो 'इष्टसाधन' रूप अनुमान प्रमाण दिया जाता है उसके अविनाभावका निश्चय पक्षमें ही होता है क्योंकि वहाँ दृष्टान्त का अभाव है। अतः जिस तरह यहाँ प्रमाणोंके अस्तित्वको सिद्ध करने में दृष्टान्तके विना भी पक्षमें ही अविनाभावका निर्णय हो जाता है उसी तरह अन्य हेतुओंमें भी समझ लेना चाहिए । तथा इस अविनाभावका निर्णय विपक्षमें बाधक प्रमाणके प्रदर्शन एवं तर्कसे होता है। प्रत्यक्षादिसे उसका निर्णय असम्भव है और इसी लिये व्याप्ति एवं अविनाभावको ग्रहण करने रूपसे तक को पृथक् प्रमाण स्वीकार किया गया है । अतः अर्थापत्ति अप्रमाण नहीं है।
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