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स्याद्वादसिद्धि
हिन्दी-सारांश १. जीव-सिद्धि
मङ्गलाचरण - श्रीवर्द्धमानस्वामी के लिये मेरा नम्र नमकार है जो विश्ववेदो (सर्वज्ञ) हैं, निध्यानन्दस्वभाव हैं और तो अपने समान बनानेवाले हैं - उनकी जो भक्ति एवं उपासना करते हैं वे उन जैसे उत्कृष्ट आत्मा (परमात्मा) बन जाते हैं ।
ग्रन्थका उद्देश्य-संसार के सभी जीव सुख चाहते हैं. रन्तु उसका उपाय नहीं जानते । अतः प्रस्तुत ग्रन्यद्वारा सुख के उपायका कथन किया जाता है क्योंकि बिना कारण के कोई भी कार्य उत्पन्न नहीं होता !
ग्रन्थारम्भ- यदि प्राणियों को प्राप्त सुख दुखादिरूप कार्य बिना कारण के हो तो किसीको ही सुख और किसीको ही दुःख क्यों होता है, सभीको केवल सुख ही अथवा केवल दुख ही क्यों नहीं होता ? तात्पर्य यह कि संसार में जो सुखादिका वैषम्य - कोई सुखी और कोई दुखी - देखा जाता है वह कारणभेद के बिना सम्भव नहीं है ।
THEMETE
तथा कोई कफप्रकृतिवाला है, कोई वातप्रकृतिवाला है और कोई पित्तप्रकृतिवाला है सो यह कफादिकी विषमता रूप कार्य भी जीवों के बिना कारणभेदके नहीं बन सकता है और जो स्त्री आदिके सम्पर्कने सुखादि माना जाता है वह भी
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