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स्याद्वाद सिद्धि
बिना कारण के असम्भव है, क्योंकि स्त्री कहीं अन्तक - धानक का भी काम करती हुई देखी जाती है- किसी को वह विषादि देकर मारनेवालो भा होती है।
क्या बात है कि सबङ्ग सुन्दर होनेपर भो कोई किसीके द्वारा ताडन-बध-बन्धनादिको प्राप्त होता है और कोई तोता मैना आदि पक्षी अपने भक्षकोंद्वारा भी रक्षित होते हुए बड़े प्र ेमसे पाले पोपे जाते हैं ?
अतः इन सब बातोंसे प्राणियों के सुख-दुखके अन्तरङ्ग कारण धर्म और अधर्म अनुमानित होते हैं । वह अनुमान इस प्रकार है -- धर्म और अधम हैं, क्योंकि प्राणियोंको सुख अथवा दुख अन्यथा नहीं हो सकता।' जैसे पत्रके सद्भावसे उसके पितारूप कारणका अनुमान किया जाता है ।
चार्वाक --अनुमान प्रमाण नहीं है, क्योंकि उसमें व्यभि चार (अर्थके अभाव में होना) देखा जाता है ?
जैन - यह बात तो प्रत्यक्षमें भी समान है, क्योंकि उसमें भी व्यभिचार देखा जाता है - सीपमें चांदीका, रज्जमें सपका और बालो में कीडोंका प्रत्यक्षज्ञान अर्थके अभाव में भी देखा गया है और इस लिये प्रत्यक्ष तथा अनुमान में कोई विशेषता नहीं है जिससे प्रत्यक्षको तो प्रमाण कहा जाय और अनुमान को श्रप्रमाण |
प्रमाण माना गया है
गया । अत
चार्वाक - जो प्रत्यक्ष निर्वाध है वह और जो निर्बाध नहीं है वह प्रमाण नहीं माना एव सीपमें चादीका आदि प्रत्यक्षज्ञान निर्वाध न होनेसे प्रमाण नहीं हैं ?
जैन - तो जिस अनुमानमें बाधा नहीं है - निर्वान है उसे
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भी प्रत्यक्षकी तरह प्रमाण मानिये, क्योंकि प्रत्यविशेषकी तरह
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