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प्रस्तावना
सिद्धि और क्षणभङ्गसिद्धि तथा शङ्करानन्द (ई०८००) ने अपोहसिद्धि और प्रतिबन्धसिद्धि जैसे नामोंवाले ग्रन्ध बनाये हैं और इनसे भी पहले स्वामी समन्तभद्र (विक्रमकी २ री, ३ री शती) और पूज्यपाद-देवनन्दि (विक्रमकी ६ठी शती) ने क्रमशः जीवसिद्धि तथा सर्वार्थसिद्धि जैसे सिद्धयन्त नामके ग्रन्थ रचे हैं । सम्भवतः वादीभलिहने अपनी यह 'स्याद्वादसिद्धि' भी उसी सरह सिद्ध्यन्त नामसे रची है। (ग) विषय-परिचय
ग्रन्थके आदिमें ग्रन्थकारने प्रथमतः पहली कारिकाद्वारा मङ्गलाचरण और दूसरी कारिकाद्वारा ग्रन्थ बनानेका उद्देश्य प्रदर्शित किया है। इसके बाद उन्होंने विवक्षित विषयका प्रति. पादन प्रारम्भ किया है। वह ववक्षित विषय है स्याद्वादकी सिद्धि और उसीमें तत्त्वव्यवस्थाका सिद्ध होना। इन्हीं दो बातोंका इसमें कथन किया गया है और प्रसङ्गतः दर्शनान्तरीय मन्तव्योंकी समीक्षा भी की गई है।
इसके लिये प्रन्थकारने प्रस्तुत प्रन्थमें अनेक प्रकरण रखे हैं। उपलब्ध प्रकरणों में विषय-वर्णन इस प्रकार है:
१. जीवसिद्धि-इसमें चार्वाकको लक्ष्य करके सहेतुक जीव आत्मा)की सिद्धि की गई है और उसे भूतसंघातका कार्य मानने का निरसन किया गया है। इस प्रकरण में २४ कारिकाएं हैं।
२. फलभोक्तृत्वाभावसिद्धि-इसमें बौद्धोंके क्षणिकवादमें दूषण दिये गये हैं। कहा गया है कि क्षणिक चित्तसन्तानरूप
आत्मा धर्मादिजन्य स्वर्गादि फलका भोक्ता नहीं बन सकता, क्योंकि धर्मादि करनेवाला चित्त क्षणध्वंसी है-वह उसी समय
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