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स्याद्वार्दासद्धि इति वार्तिकतः शब्द.......... ......... -११-२०। ।
इसी तरह प्रशस्तकर', दिग्नागर, धर्मकीर्ति जैसे प्रसिद्ध दार्शनिक ग्रंथकारों के पद-वाक्यादिकोंके भी उल्लेख इसमें पाये जाते हैं। १ 'इह शाखासु वृक्षोऽयमिति सम्बन्धपूर्विका।
बुद्धिरिहेदबुद्धित्वात्कृण्डे दधीति बुद्धिवत् ॥ ..-८ ॥ इसमें प्रशस्तकरके प्रशस्तपादभाष्यगत समवायलक्षण की सिद्धि प्रदर्शित है । तथा आगेकी कारिकाओंमें उनके 'अयुतसिद्धि' विशेषण की आलोचना भी की गई है। २ "विकल्पयोनयः शब्दा इति बौद्धवचःश्रुतेः ।।
कल्पनाया विकल्पत्वान्न हि बुद्धस्य वक्तृता ॥' ७.५ ॥
इस कारिकामें जिस 'विकल्पयोनयः शब्दा:' वाक्यको बौद्धका वचन कहा गया है वह वाक्य निम्न कारिकाका वाक्यां
"विकल्पयोनयः शब्दा विकल्पाः शब्दयोनयः । तेषामन्योन्यसम्बन्धो नार्थान् शब्दाः स्पृशन्त्यमी ॥' यह करिका न्यायकुमुदचन्द्र (पृ० ५३७) आदि ग्रंथों में उद्धृत है।८ वी.वीं शतीके विद्वान् हरिभद्रने भी इसे अनेकान्तजयपताका (पृ० ३३७) में उद्धृत किया है और उसे भदन्त दिन्नकी बतलाई है। भदन्त दिन सम्भवतः दिग्नागको ही कहा गया है। इस कारिकामें प्रतिपादित सिद्धान्त (शब्द और अर्थके सम्बन्धाभाव)को दिग्नागके अनुगामी धर्मकीर्तिने भी अपने प्रमाणवार्तिक (३-२८४) में वर्णित किया है। ३ 'विधूतकल्पनाजालगम्भोरोदारमूर्तये।
इत्यादिवाक्यसद्भावात्स्याद्धि बुद्धऽप्यवक्तृता ।' ७-४ । इस कारिकाका पूर्वाध प्रमाणवार्तिक १-१ का पूर्वार्ध है।
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