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स्याद्वादसिद्धि
___ 'अद्य निराधारा धरा निरालम्बा सरस्वती ।'
अतः वादीम सिंह राजा भोज (वि० सं०१०७६ से चि० ११. ५०) के बाद के विद्वान हैं।
ये दो बाधक हैं जिनमें पहले के उद्भावक श्रद्धेय पं० नाथूरामजी प्रेमी हैं और दूसरे के स्थापक श्रीकुप्पुस्वामी शास्त्री तथा समर्थक प्रेमीजी हैं । इनका समाधान इस प्रकार है
१. कवि परमेष्ठी अथवा परमेश्वरने जिनसेन और गुणभद्र के पहले 'वागर्थसंग्रह' नामंका जगप्रसिद्ध पुराण रचा है। और जिसमें वेशठशलाका पुरुषोंका चरित वर्णित है तथा जिसे उत्तरवर्ती अनेकों पुराण कारोंने अपने पुराणोंका आधार बनाया है। खुद जिनसेन और गुणा भद्रने भी अपने आदिपुराण तथा उत्तरपुराण उसीके अधारसे बनाये हैं, यह प्रेमीजी स्वयं स्वीकार करते हैं । तब वादीमसिंहने भी जीवन्धरचरित जो उक्त पुराणमें निबद्ध होगा उसी (पुराण) से लिया है, यह कहने में भी कोई बाधा नहीं जान पड़ती । . गद्यचिन्तामणिका जो पद्य प्रस्तुत किया गया है उसमें सिर्फ इतना ही कहा है कि 'इसमें जीवन्धरस्वामोके चरितके उद्भावक पुण्यपुराणका सम्बन्ध होने अथवा मोक्षगामी जोवन्धरक पुण्य-चरितका कथन होनेसे यह ( मेरा गद्यचिन्तामणिरूप वाक्य-समूह) भी उभय लोकके लिये हितकारी है।' और वह पुण्य पुराण उपयुक्त कविपरमेष्ठीका वागर्थसंग्रह भी हो सकता है। इसके सिवाय, गद्यचिन्तामणिकारने उस जीवन्धरचरितको गद्यचिन्तामणिमें कहनेकी प्रतिज्ञा की है जिसे गणधरने कहा १ देखो डा० ए० एन० उपाध्येका 'कवि परमेश्वर या परमेष्ठी' शीर्षक
लेख, जैनसि० भा. भाग १३, कि. २। २ देखो, जैनसाहित्य और इतिहास पृ० ४२१ ।
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