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समवा
स्याद्वादसिद्धि की गई है । अतः सम्भव है इसका नाम 'गुण-गुणीअभेदसिद्धि' हो। इसमें ७० कारिकाएं उपलब्ध हैं। इसकी अन्तिम कारिका, जो खण्डित एवं त्रुटित रूपमें है, इस प्रकार है'ताह शेषणभावाख्यसम्बन्धे तु न च (चा?) स्थितः।
"""७॥ ब्रह्मदूषणसिद्धि-उपलब्ध रचनामें उक्त प्रकरणके बाद यह प्रकरण पाया जाता है । मूडबिद्रीकी ताडपत्र-प्रतिमें उक्त प्रकरणको उपर्युक्त 'तद्विशेषण' आदि कारिकाके बाद इस प्रकरणकी 'तन्नो घेद्ब्रह्मनिणीति आदि ५२ वीं कारिकाके पूर्वाद्ध तक सात पत्र ऋटित है । इन सात पत्रोंमें मालम नहीं कितनी कारिकाएं और प्रकरण नष्ट हैं। एक पत्र में लगभग ५० कारिकाएं पाई जाती हैं
और इस हिसाबसे सात पत्रों में ५०४७-३५० के करीब कारिकाए होनी चाहिये और प्रकरण कितने होंगे, यह कहा नहीं जा सकता । अत एव यह 'ब्रह्मदूषणसिद्धि' प्रकरण कौनसे नम्बर अथवा संख्यावाला है, यह बतलाना भी अशक्य है। इसका ५१३ कारिकाओं जितना प्रारम्भिक अश नष्ट है । ब्रह्मवादियोंको लक्ष्य करके इसमें उनके अभिमत बह में दूषण दिखाये गये हैं। यह १८६ (-५१३-१३७३) कारिकाओंमें पूर्ण हुआ है और उपलब्ध प्रकरणों में सबसे बड़ा प्रकरण है।
अन्तिम प्रकरण-उक्त प्रकरणके बाद इसमें एक प्रकरण और पाया जाता है और जो खण्डित है तथा जिसमें सिर्फ प्रारम्भिक ६६ कारिकाएं उपलब्ध हैं । इसके बाद ग्रन्थ खण्डित
और अपर्ण हालतमें विद्यमान है। चौदहवें प्रकरणकी तरह इस प्रकरणका भी समाप्तिपुष्पिकावाक्य अनुपलब्ध होनेसे इसका नाम ज्ञात नहीं होता । उपलब्ध कारिकाओंसे मालम होता है कि
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