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स्याद्वादसिद्धि यदि भिन्न हों तो वे आत्माके सिद्ध नहीं होते, क्योंकि उनमें समवायादि कोई सम्बन्ध नहीं बनता। अतः नित्यकान्तमें
आत्माके भोक्तापन आदिका अभाव सिद्ध है। इस प्रकरण में ३२ कारिकाएँ हैं।
६. सर्वज्ञाभावसिद्धि-इसमें नित्यवादी नैयायिक,वैशेषिक और मीमांसकोंको लक्ष्य करके उनके स्वीकृत नित्यैकान्त प्रमाण (आत्मा ईश्वर अथवा वेद) में सर्वज्ञताका अभाव प्रतिपादन किया गया है। इसमें २२ कारिकाएँ हैं।
७. जगत्कत त्वाभावसिद्धि-इसमें ईश्वर जगत्कर्ता सिद्ध नहीं होता, यह बतलाया गया है। इसमें भी २२ कारिकाएं हैं।
८. अर्हत्सर्वज्ञसिद्धि - इसमें सप्रमाण अर्हन्तको सर्वज्ञ सिद्ध किया गया है और विभिन्न बाधाओंका निरसन किया गया है। इसमें २१ कारिकाएँ हैं।
ह.अर्थापत्तिप्रामाण्यसिद्धि-नववाँ प्रकरण अर्थापत्तिप्रामाण्यसिद्धि है। इसमें सर्वज्ञादिकी साधक अर्थापत्तिको प्रमाण सिद्ध करते हुए उसे अनुमान प्रतिपादन किया गया है
और उसे माननेकी खास आवश्यकता बतलाई गई है। कहा गया है कि जहाँ अर्थापत्ति (अनुमान)का उत्थापक अन्यथानुपपन्नत्वअविनाभाव होता है वही साधन साध्यका गमक होता है। अत एव उसके न होने और अन्य पक्षधर्मत्वादि तीन रूपोंके होने पर भी वह श्याम होना चाहिये, क्योंकि उसका पुत्र है, अन्य घुत्रोंकी तरह इस अनुमानमें प्रयुक्त 'उसका पुत्र होना' रूप सा. घन अपने 'श्यामत्व' रूप सांध्यका गमक नहीं है। अतः अर्थापत्ति अप्रमाण नहीं है-प्रमाण है और वह अनुमानस्वरूप है। इस
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