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प्रस्तावना स्याद्वादसिद्धि और वादीभसिंहमूरि
१. स्याद्वादसिद्धि
. (क) ग्रन्थ-परिचय
इस ग्रन्थरत्नका नाम 'स्याद्वाद सिद्धि' है। यह दार्शनिकशिरोमणि वादीमसिंहसूरिद्वारा रचो गई महत्वपूर्ण एवं उच्चकोटिकी दार्शनिक कृति है। इसमें जैनदर्शनके मौलिक और महान् सिद्धान्त स्याद्वाद' का प्रतिपादन करते हुए उसका विभिन्न प्रमाणों तथा युक्तियोंसे साधन किया गया है । अतएव इसका 'स्याद्वादसिद्धि' यह नाम भी सार्थक है। यह प्रख्यात जैन तार्किक अकलंकदेवके न्यायविनिश्चय आदि जैसा ही कारिकात्मक प्रकरणग्रन्थ है । किन्तु दुख है कि यह विद्यानन्दकी 'सत्यशासनपरीक्षा'
और हेमचन्द्रकी 'प्रमाणमीमांसा' की तरह खण्डित तथा अपूर्ण ही उपलब्ध होता है । मालूम नहीं, यह अपने पूरे रूपमें और किसी शास्त्रभण्डारमें पाया जाता है या नहीं । अथवा, प्रन्थकार के अन्तिम जीवनकी यह रचना है जिसे वे स्वर्गवास हो जानेके कारण पूरा नहीं कर सके ? मूडबिद्रीके जनमठसे जो इसकी एक अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण और प्राचीन ताडपत्रीय प्रति प्राप्त हुई है तथा जो बहुत ही खण्डित दशामें विद्यमान है-जिसके अनेक पत्र मध्यमें और किनारोंपर टूटे हुए हैं और सात पत्र
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