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________________ १६ स्याद्वादसिद्धि दो जिससे ये टिमटिमाते रहे और जगत्को अपने अस्तित्वका भान कराते हुए प्रकाशपत्र सुझावें । समाज में विद्वानोंकी संख्या सैकड़ोंमें है । पर इस ज्ञानयज्ञके होता कितने हैं ? और समाजने बुद्धिपूर्वक कितनों को इस ओर प्रेरित किया ? यह प्रश्न ठंडे दिवसे उद्धारक वृत्तिसे सोचनेका है ? आशा है इस नत्र और स्पष्ट निवेदन पर ध्यान जायगा । भारतीय ज्ञानपीठ, काशी २-८-५० अशुद्ध नेष्यतः (ष्टिता) सदहेतुकाताचित अन्यश्चा वर्णेष सवस्तत्र वरणादेतदुपमर्दनकार्यागुणत्वस्यविशेसशीत्य महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य J (स० मूर्तिप्रंथमाला भारतीय ज्ञानपीठ) Jain Education International शुद्धि-पत्र शुद्ध नेष्यतः (ते) सदहेतुकता चिकचेति अन्यैश्चा वर्णेषु सर्वस्तत्र वर्णादितदुपमर्दनं कार्या गुणत्वस्याविशेसंशीत्य For Private & Personal Use Only पृष्ठ ર્ ३ १२ ३३ ३४ ३४ ३४ ४० ४७ ४८ पंक्ति ११ १ १३ १४ ૨ २० १४ १८ www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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