Book Title: Swami Kartikeyanupreksha
Author(s): Jaychandra Pandit
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 12
________________ वर्णन करि तिनकी संख्याका कही है ताका असा बहुत्व कह्या है । बहुरि प्रायु कायका परिमाण कया है। बहुरि अन्यवादी केई जीवका स्वरूप अन्य प्रकार मानै हैं, तिनिका युक्ति करि निराकरण किया है। बहुरि अंतरात्मा ब. हिरात्मा परमात्माका वर्णन करि कहा है जो अंतरतत्त्व तो जीव है पर अन्य सर्व वाह्य तत्त्व हैं । ऐसें कहि करि जीवनिका निरूपण समाप्त किया है । पीछे अजीवका निरूपण है । तहां पुद्गल द्रव्य धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य आकाशकाल द्रव्यका वर्णन किया है । बहुरि द्रव्यनिके परस्पर कारण कार्य भावका निरूपण किया है। बहुरि कहा है जो द्रव्य सर्व ही परिणामी द्रव्य पर्यायरूप हैं ते अनेकान्त स्वरूप हैं । अनेकान्त वि. कार्य कारण भाव नाही बने है। कारण कार्य विना काहेका द्रव्य ? ऐसे कया है । बहुरि द्रव्य पर्यायका स्वरूप कहिकरि पीछे सर्व पदार्थकू जाननेवाला प्रत्यक्ष परोक्ष स्वरूप ज्ञानका वर्णन किया है । व. हुरि अनेकान्त वस्तुका साधनेवाला श्रुतज्ञान है, ताके भेद नव हैं । ते वस्तुकू अनेक धर्मस्वरूप साधै हैं तिनिका वर्णन है। बहुरि कह्या है जो प्रमाण नयनित वस्तुकू साधि मोक्षमार्ग• साधै हैं ऐसे तत्के सुननेवाले, जाननेवाले, भाव. नेवाले विरले हैं विषयनिके वशीभूत होनेवाले बहुत हैं। ऐसे कहिकरि लोकभावनाका कथन संपूर्ण किया है । बहुरि आगे बोधदुर्लभानुप्रेक्षाका वर्णन अठारह गाथानिमें कीया है। तहां निगोदते लेकरि जीव अनेक पर्याय सदा

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