Book Title: Swami Kartikeyanupreksha
Author(s): Jaychandra Pandit
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 11
________________ पीठिका। अब यामें प्रथम ही पीठिका लिखिए है। तहां प्रथम ही मंगलाचरण गाया एकमें करि बहुरि गाथा दोयमें बा. रह अनुप्रेक्षाका नाम कहै हैं । पीछे उगणीस गाथामें अ. ध्रुवानुप्रेक्षाका वर्णन किया । पीछे अशरण अनुप्रेक्षाका वर्णन गाथा नवमें किया। पीछे संसार अनुप्रेक्षाका वर्णन गाथा वियालीसमें किया है । तहां च्यारि गति दुःखका वर्णन, संसारकी विचित्रताका वर्णन, पंच प्रकार परावर्तन रूप भ्रमणका वर्णन है । बहुरि पीछे एकत्वानुप्रेक्षाका वर्णन गाथा छहमें किया । पीछे अन्यत्वानुप्रेक्षाका वर्णन गाथा तीनमें किया। पीछे अशुचित्वानुप्रेक्ष का वर्णन गाथा पांच में किया है । पीछे प्रास्रानुप्रेक्षाका वर्णन गाथा सातमें किया है। पीछे संवरानुप्रेक्षाका वर्णन गाथा सातमें किया है । पीछे निजरानुप्रेक्षाका वर्णन गाथा तेरामें किया है। पीछे लोकानुप्रेक्षाका वर्णन गाथा एकसौ अडसठमें कीया है । तहां यहु लोक षद्रव्यनिका समूह है । सो श्राकाशद्रव्य अनंता है ताके मध्य जीव अजीव द्रव्य है ताकू लोक कहिये है । सो पुरुषाकार चौदह राजू ऊंचा घनरूप क्षेत्रफल कीए तीनसै तियालीस राजू होय है। ऐसे कहिकरि पीछै कया है जो यह जीव अजीव द्रव्यनितें भरया है । तहां प्रथम जीव द्रन्यका वर्णन किया है। ताके अव्याणवै जीव समास कहे हैं, पीछे पर्यातिनिका वर्णन है। बहुरि तीन लोकमें जो जीव जहां जहां बसे हैं तिनका

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