________________
ऐसी ही एक रहस्य यात्रा का अनुभव इस पुस्तक को पढ़कर हुआ।
हमारे सुविनेय आ.श्री नयचन्द्रसागरसूरिजी ने अपने चिंतन-कलश से श्री श्रीपाल-मयणा के जीवन-चरित्र पर अभिषेक किया तब कई आच्छादित वास्तविकताओं का घटस्फोट हुआ । जैसे कि - • उंबर और मयणा पहली ही बार मिलते हैं और दोनो के बीच जो संवाद होता है उसमें स्पष्ट पता चलता है कि उंबर ने मयणा में दिव्यता के
और मयणा ने उंबर में सत्त्व के दर्शन किए। • सच्चे धर्म की प्राप्ति के लिए पुण्योदय से ज्यादा आत्मशुद्धि अनिवार्य
• आज प्रभु-भक्ति में संगीतकार और विधिकार की महत्ता बढ़ गई है।
संगीतकार स्तवन और विधिकारक विधि के बजाय भाषण-प्रवचन पर ध्यान देने लगें हैं । पता नहीं चलता है कि ऐसा करने से मूलभूत तत्त्व के रुप में बिराजमान प्रभु गौण हो जाते हैं और आशातना के भागी बनना पड़ता है। श्रीपाल कुमार विदेश जाते है तब मयणा को माता के पास रखते है और मयणा भी बात मान जाती है । इससे मयणा एक संदेश देती है कि लगाव से कर्तव्य का विशेष महत्त्व है । यह संदेश पत्नि-भक्तों को सीख देता है कि माता भक्त बनो, पत्नि भक्त नहीं । देवों से मानव की महत्ता अधिक है क्योकि देवो के पास भव प्रत्ययिक शक्ति होती है, जो पुण्य के आधीन है और मानव के पास गुणप्रत्ययिक शक्ति होती है, जो पुरुषार्थ के आधीन है। आर्य-संस्कृति में ससुरजी का कुछ नहीं लिया जाता, दूसरे का भी नहीं लिया जाता, परन्तु मामा की ओर का सब लिया ही जा सकता है । इसी उक्ति के अनुसार श्रीपाल-मयणा मामा के घर रुकते है, फिर विदेश यात्रा पर निकल जाते है।
SHAKTI