Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 100
________________ होता है तो आचार्यश्री भूमंडल से वेष्टित करने का नही कहते । जैसे वर्धमान विद्यायंत्र को पृथ्वी मंडल से वेष्टित करने के लिए कहा गया है, उसी अर्थ में भूमंडले' शब्द द्वारा सप्तमी विभक्ति का उपयोग कर सिद्धचक्र को पृथ्वी मंडल से वेष्टित करने के लिए कहा गया है । सप्तमी विभक्ति का अर्थ आधार अर्थ में भी होता है। __ मंत्रशास्त्र में बताए गए पृथ्वी मंडल में सिद्धचक्र यंत्र आलेखन का स्पष्ट निर्देश किया गया है, तो भी मात्र शब्द शास्त्र के अर्थ से प्रेरित होकर आज पूजनो में मांडला नीचे बनाकर सर्वत्र अविधि हो रही है । इसमें विनय धर्म का खंडन हो रहा है। अभिमंत्रित पंचधान्य से बनाए मांडले को अभिमंत्रित कर (वासक्षेप से जाग्रत कर) उसका पूजन होता है, इससे वो भी पूज्य बनता है । पूजन में पूजक, पूजा में उपस्थित रहनेवाले आसन या जाजम (दरी) पर बैठते है, कभी-कभी क्रियाकारक या विधिकारक पाटले पर भी बैठते है, तो पूज्य से पूजक उपर बैठे तो विनय का पालन कैसे हो सकता है ? _ विनयधर्म का पालन हो और विधिपूर्वक पूजन पढाई जाए, ऐसे शुभ आशय से यह अनुचिंतन लिखा गया है । शासन की एक महत्तम क्रिया शुद्ध बने, ऐसे भावो के साथ विराम लेता हुँ । जा ।विणय मूलो धम्मो ।। विनय धर्म का मूल है । इसलिए पूजन का आयोजन करो तो पूज्यभाव, अहोभाव और विनयमर्यादा के पालन के साथ करो । मांडला पीठीका के उपर ही बनाना है । मांडले का आलेखन जमीन पर करना अविनय है...आशातना है...अनादर है। श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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