Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 101
________________ 12. परिशिष्ट - २ पूजन अखंड कब बने ? (पूजन निश्चित करते समय अमल करने योग्य लेख) तारक परमात्मा की विशिष्ट भक्ति स्वरुप सिद्धचक्रादि अनेक पूजन भावभक्तिपूर्वक हो रहे है, यह अनुमोदनीय है, परंतु काल प्रवाह और लोक व्यवहार के कारण विधानो में प्रविष्ट हो चुकी कुछ कुप्रथाएँ विधानो के मूल को खत्म कर रही है । परिणामतः पूजन पढ़ाने के आनंद में संतोष मानने से उसके मूल फल की ओर नजर भी नहीं जाती, यह हमारी अज्ञानता है । आज पूजनों में कुछ बातो में बहुत दुर्लक्ष्यता का सेवन हो रहा है, इसमें भी पूजन अखंड कैसे बने इस विषय में विचारणा करने जैसी है । मंत्रशास्त्र के नियमानुसार कोई भी विधान अखंड रुप से शुद्धिपूर्वक किया जाए तो वह फलीभूत हो सकता है । आज पढ़ाए जाने वाले पूजनो में सर्वव्यापकता से खंडित पूजन का दोष लग रहा है । कोई भी मंत्र, विधान या अनुष्ठान प्रारंभ से अंत तक एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाए, तो वह विधान अखंडित-सलंग बनता है । किसी भी अनुष्ठान के प्रारंभ में आत्मरक्षा, मंत्रस्नानादि विधान किए जाते है और पूजा अनुष्ठान के अंत में क्षमापना विधान कर विधान में दोष लगा हो, उसकी माफी मांगने की विधि की जाती है । अथ से इति तक एक अखंड विधान एक ही व्यक्ति द्वारा (आराधक बदले बगैर) होना जरुरी है । सगे-संबंधियो को लाभ मिले, ऐसे शुभाशय को आगे करके जानते-अजानते अखंड पूजन के मूल को नष्ट करने से क्या लाभ ? श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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