Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 103
________________ क्या उन्होने विद्या देवियों के पूजन में खड़े होकर कन्याओ को बैठाया होगा? २४ यक्ष पूजन मयणा ने नहीं किया होगा ? नहीं, सिरि सिरिवाल कहा ग्रंथ में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि, आदि से अंत तक श्रीपाल-मयणा ने ही पूजन किया है । कहीं जोड़ा कहीं कन्या, कहीं भाई, कहीं बहन ही चाहिए, ऐसा कोई विधान नहीं है । जिसे भी पूजन करना हो वो अखंडता से पूजन कर सकता है । पूजन में बार-बार व्यक्तियों को बदलने में पूजन खंडित करने का कितना बड़ा दोष लगता है । और तो और, पूजन के आदि से अंत तक की अखंड भक्ति के बदले पूजन में कौन बैठा ? अब कौन बैठेगा ? कोई स्वजन तो नहीं रह गया न ? इस देखरेख में ही पूजन पूर्ण हो जाता है । पूजन में भगवान का ध्यान किया या स्वजनो का? यह कौन सोचता है ? अखंड विधि सम्हालना हो और व्यवहार भी सम्हालना हो तो भी दोनो सम्हल सके ऐसी व्यवस्था पहले से ही जमाई जा सकती है। सगे-संबंधियो में जिन्हे भी पूजन का लाभ देना हो, उतनी पीठिका बनाकर अलग-अलग यंत्र रखकर मुख्य यंत्र पर किया जानेवाला विधान सब यंत्रो पर किया जाए, पर हाँ, सबको पहले ही स्पष्ट सूचना कर देना आवश्यक है कि, आदि से अंत तक पूजन का लाभ देना है तो बीच में से छोड़ नहीं सकते । इस तरह ११/२१/२७ या उससे अधिक पीठिका करने से व्यवहार और विधि दोनो मर्यादाओ का पालन हो जाता है । बाकी तो 'भेड़...चाल' में चलने से विधिभग्न, अनादर या अबहुमान का दोष जरुर लगता है । 'सुज्ञेषु किं बहुना' परिवार या संघ में होनेवाले प्रसंगो में पूजन में विधिभग्न के दोष से बचकर अखंड पूजन कर पूर्ण फल पाएँ, इसी मंगल भावना के साथ विराम लेता हूँ। -नयचंद्रसागर श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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