Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 105
________________ ३) कोंकण-थाणा-वसुपाल राजा - नैमित्तक - जमाई कौन ? पृच्छा - चंपकवृक्षस्थिर छाया के नीचे सोया हुआ पुरुष - पुत्री मदनमंजरी - लग्न-स्थगीधर पद धवल–डुंब का कलंक—कुल का पूछना - बाहु-जहाज में दो स्त्री-वसुपाल प्रसन्नभगिनी पुत्र–वधार्थे–छुडाया- अपने महल में छुरी से धवल की मौत - ४) श्रीपाल राजवाटिका - सार्थवाह - कुंडलपुर - १०० योजन - मकरकेतु राजागुणसुंदरी-वीणादक्ष-नवपद ध्यान- विमलेश्वर-हार-वामनरुप–विवाह ५) मुसाफिर - कांचनपुर - ३० योजन - वज्रसेन राजा - त्रैलोक्यसुंदरी - स्वयंवर मंडप ६) कोइ चरपुरुष–सभा में आना - देव पतन-धारापाल राजा-पांच पुत्रो के उपर पुत्री - शृगांरसुंदरी-५ सखी - चित्त के भावो से समस्या का हल करे वो.... ७) कोइ भट्ट–सभामें–कोल्लाल नगर में वीरपुरंदर राजा - जयसुंदरी पुत्री - राधावेध प्रतिज्ञा–सभी स्त्रीओ को बुलाने के लिए आदमीओ को भेजना-सभी स्त्रीओ+सैन्य के साथ ठाणा आना - वसुपाल मामा द्वारा राज्याभिषेक - कालान्तरे उज्जयिनी नगरी की ओर प्रयाण - माता को नमन करने जाना.... प - कुब्ज ८) सोपारक नगर-महासेन राजा- - तिलकसुंदरी - सर्पदंश से दुःखी-हारजल से बच जाना- विवाह • उज्जैन - श्रीपाल द्वारा नगर घेरना - नगरी के दरवाजे बंध - रात को श्रीपाल घर पर–सास, बहु की बातें-दोनो को लेकर तंबू में-प्रजापाल कंधे पर कुल्हाडी रखकर-श्रीपाल का सामने जाना - नाटक - सुरसुंदरी प्रागट्य स्वराज्य के लिए अजितसेन को संदेशा- युद्ध - अजितसेन पराजय-दीक्षा-पुत्र को राज्य • पूर्व भव-1 - हिरण्यपुर श्रीकान्त - श्रीमती - शिकार प्रिय-रजोहरण सहित मुनि को चामरवाला कोढिया–५०० उल्लंठो के द्वारा पत्थर, लाठी से पीडा-नदी किनारे मुनि - गवाक्ष में राजा - मुनि को देखना- निकालो, निकालो डुंब है - श्रीकान्त में गुण- सभी बाते श्रीमती को कहना - गुरु से प्रायश्चित्त-नवपद आराधना • · सिद्धचक्र ४।। वर्ष के बाद उजमणा- पूजन - मांडला - वेदिका के उपर भुवनपाल पुत्र को राज्य- नवपद के ध्यान में लीन - नौवे भव में मोक्ष श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा 89

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