Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 99
________________ 'भूमंडले' शब्द का अर्थ मंत्रशास्त्र में एकदम भिन्न होता है । पूज्यश्री द्वारा बताई गई बात तब एकदम सत्य लगी । 'अनुभव सिद्धांत द्वात्रिंशिका' ग्रंथ की प्रस्तावना में बताए अनुसार मंत्र शास्त्र में जुदे जुदे आकारो और बीजाक्षरो के माध्यम से चार मंडलो की रचना होती है । पृथ्वी मंडल, जलमंडल, अग्निमंडल, वायु मंडल । उनमें हरेक मंडल के आकार और बीज निम्नानुसार है. मंडलका नाम वर्ण आकार बीज मंत्र दीशामें लं, क्षिं १) पृथ्वी मंडल पीला चतुष्कोण २) जल मंडल सफेद कलश समान गोल वं, पं ३) अग्नि मंडल लाल त्रिकोण रं, ॐ ४) वायु मंडल काला गोलाकार यं, स्वा | चारो दिशा में लिखना चारो दिशा में लिखना | चारो दिशा में लिखना | चारो दिशा में लिखना सिद्धचक्र यंत्र पृथ्वी मंडल का यंत्र है, इस रचना का उद्भव चार सीधी रेखाओं के बाहर निकलते सिरे वाला चौकोर बनाकर उसके सिरे पर बीजमंत्र लँ और रेखाओं के बीच क्षिं लिखने से होता है । मंत्रशास्त्र में आकार और बीजमंत्रो के माध्यम से उपर्युक्त चार प्रकार के मंडल बनते है, उनमें से भू-पृथ्वी, पृथ्वी मंडल में यह सिद्धचक्र यंत्र और मंडल आलेखन का विधान है । भूमंडल शब्द का अर्थ 'भूमि का तल' किया जाए तो मंत्रशास्त्र पारंगत पू. आ. देवश्री सिंहतिलकसूरीश्वरजी म. सा. ने वर्धमान विद्या कल्प में जो श्लोक बताया है वह समझने जैसा है - भूमण्डलेन वेष्टयेत् इदं यत्र विधिः पूर्णा । इदं विधि पूर्णा अर्थ – पृथ्वी मंडल से वेष्टित इस यंत्र की विधि पूर्ण हुई । (भूमंडलवेष्टन यानि यंत्र के चारो ओर एक दूसरे के सिरे पार करती हुई चार रेखाएँ बनाकर कानो में लं और चार दिशा में 'श्रीं' बीज मंत्र की स्थापना करना । मंत्रशास्त्र में इस प्रक्रिया को 'भूमंडल - वेष्टन' कहा जाता है । यदि 'भूमि के तल पर ही मंडल करना' ऐसा भूमंडल शब्द का अर्थ श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा (83)

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