Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 97
________________ 11. परिशिष्ट - १ पूजनो में मंडल आलेखन (मांडला) रहस्यमय एक अनुचिंतन जिनशासन में प्रभु भक्ति के अनेक मार्गों में वर्तमान काल में सिद्धचक्रादि पूजनों की प्रधानता बढ़ रही है। इन पूजनो में विधि-शुद्धि का ध्यान रखा जाए तो वर्तमान में भी शांति और पौष्टिक दोनो तरह से अनुष्ठान फलता है । पिछले ५० वर्षों में, उसमें भी अंतिम २० वर्षो से पूजन पढ़ाने का प्रवाह बढ़ता जा रहा है । इन पूजनो में कई बातो पर विचार किया गया है । __ आज अधिकतर पूजनों में मांडले का आलेखन भूमि-तल पर ही हो रहा है, जिसमें शासन के धर्म के मूल समान विनय गुण का अभाव दिखाई दे रहा है । 'पूज्य वस्तु को नाभि से उपर रखना चाहिए' यह विनय धर्म है, और मांडला नीचे बनाने से विनय लुप्त होता है । इसके उपरांत सिद्धचक्र पूजन का मूल 'सिरि सिरिवाल कहा' नाम का ग्रंथ है । श्रीपाल महाराजा साढ़े चार वर्ष सिद्धचक्र की आराधना कर उद्यापन करते है और विस्तार से सिद्धचक्र पूजन पढ़ाते है । इसका सुंदर विशद वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है, इस संबंध में श्रीपालने विशिष्ट पीठिका बनवाई, उसे विविध रंगो से रंगकर उस पर पंच धान्य से मांडला बनाया है.. श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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