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समझाने के बावजूद भी धवल की दुर्जनता, अपकारवृत्ति, छीनने के भाव शांत नहीं होते । कर्म की कैसी विचित्रता ! सच्ची सलाह देनेवाले मित्र भी उसे अपने मित्र नहीं, दुश्मन लगते हैं । हमारे जीवन में भी हमारी विचारधारा से विपरीत सच्ची सलाह हमे पसंद आती है या नहीं ? हमारी आत्मा में कालिमा या उज्ज्वलता कितनी है ? इससे नापा जा सकता है ।
श्रीपाल की संपत्ति-पत्नियों को अपनी करने के लिए धवल ने कितने सारे प्रयत्न किए ! 'मैं खराब कर रहा हूँ यह ख्याल तक उसके मन में कभी नहीं आया। श्रीपाल को तो यह मेरा द्वेषी है, हैरान करता है, ऐसा कोई विचार स्पर्श भी नहीं करता, उल्टे वो तो सतत भला ही करते है । इस तरह श्रीपाल उपकार की पराकाष्ठा है, और धवल अपकार की पराकाष्ठा है ।
धवल ने श्रीपाल पर कितने अपकार किए :
१) धवल भरुच में देवी को बलि चड़ाने के लिए श्रीपाल को पकड़ने का प्रयत्न करता है । युद्ध करता है । रत्नद्वीप में श्रीपाल अपना व्यापार धवल को सोंप देते है । वो व्यापार में गड़बड़ करता है। सस्ते मे खरीदे हुए माल की कीमत अधिक बताता है और अधिक कीमत में बिके माल की कीमत कम बताता है।
महाकाल राजा के बंधन में से खुद को और अपनी संपत्ति छुड़ाने के लिए श्रीपाल को दी गई आधी संपत्ति, बब्बरकूट और रत्नद्वीप से दो राजकन्याओं के साथ विवाह के बाद दहेज में मिली समृद्धि को देखकर सब लेने की कुबुद्धि धवल में जोर करने लगी।
रत्नद्वीप से निकलने के बाद श्रीपाल को मारकर सब अपना करने की बुद्धि से श्रीपाल को दरिये में डाल दिया ।
श्रीपाल की पत्नियों को अपना बनाने के लिए सांत्वना के नाम पर दुर्व्यवहार का प्रयत्न किया ।
समुद्र में गिराने के बाद भी श्रीपाल को जीवित देखकर हृदय बैठ गया
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा