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फिर चाण्डाल का कलंक लगाकर जान से मारने की योजना बनाई ।
कलंक की योजना का पर्दाफाश होने पर राजा ने धवल को फांसी की सजा दी । उन्हें अपने ही महल में पिता के स्थान पर रखा तो भी धवल को शांति नहीं हुई । इर्ष्या की आग अंतर जला रही है । आखिर में अपने ही हाथों अपने उपकारी को खत्म करने आधी रात को कटारी लेकर ऊपर चड़ते हैं, और खुद मर जाता हैं ।
श्रीपाल को मारने के लिए ४-४ बार किये प्रयत्न निष्फल होते है, और अंत मे धवल ही मरता है ।
_श्रीपाल जानते है कि धवल को मेरी संपत्ति-वैभव और पत्नियों को देखकर ईर्ष्या आती है, पर श्रीपाल धवल को कभी दुश्मन के रुप में नहीं देखते है । हर पल उसे सज्जन मानकर ही व्यवहार करते हैं । उपकार पर उपकार करते ही जाते है । अपकारी पर भी उपकार करते रहते हैं । अपकारी पर उपकार करनेवाले श्रीपाल उपकार की पराकाष्ठा है ।
चलो ! श्रीपाल ने धवल पर किए उपकारों की श्रृंखला सोंचतो है ।
जहाज में मुसाफिरी का किराया निश्चित की गई रकम से दस गुना किराया दिया ।
भरुच में देवी द्वारा अटकाए जहाजों को श्रीपाल ने छुड़वाया ।
बब्बर कुल में महाकाल राजा से मुक्त करवाकर संपत्ति वापिस दिलवाई।
रत्नद्वीप में स्वर्णकेतु राजा ने कर नहीं चुकाने के कारण धवल को फांसी दी तब श्रीपाल ने छुड़वाया ।
कोंकण देश में चांडाल को कलंक का रहस्य खुलने पर राजा ने धवल को फांसी का दण्ड़ दिया तब मृत्यु के मुख से श्रीपाल ने बचाया और अपने महल में पिता के स्थान पर रखा ।
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा