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सिद्धि श्रीपाल ने ले ली होती तो..कितना सोना बना सकते ? अपने जीवन की सारी समस्या दूर हो जाती फिर भी स्वीकार नहीं किया, छोड़ दिया ।
२) श्रीपाल को राजा बनने का अरमान है, पर किसी का उपकार लिए बिना सिर्फ अपने बाहुबल से राजा बनना है। बब्बर कुल नगरमें धवल को छुड़ाने के लिए श्रीपाल महापाल राजा के साथ युद्ध करते है । एक तरफ राजा और सैनिक है, दूसरी ओर केवल श्रीपाल है, तो भी श्रीपाल जीत जाते है। महाकाल राजा को हराने के बाद राजनीति के नियम से 'जीते उसका राज्य' यानि राज्य-सेना-संपत्ति सब पर श्रीपाल का अधिकार है, पर श्रीपाल महाकाल को उसका राज्य सौंप देते है । बाहुबल से मिले राज्य का भी त्याग कर देते है।
३) धन-संग्रह करने निकले श्रीपाल को पता है, कि धवल मेरी इर्ष्या करता है, मेरा व्यापार बिगाड़ देगा, फिर भी अपने व्यापार की तमाम जवाबदारी धवल को सौंप देते है । मेरी आय कम हो जाएगी, कमाइ धवल ले लेगा, ऐसा कोई विचार नहीं करते ।
४) धवल पर श्रीपाल सतत उपकार करते है, फिर भी धवल के हृदय में शांति नहीं है । श्रीपाल को मारने के प्रयत्न में धवल खुद ही मर जाता है । धवल की मृत्यु के बाद धवल की समस्त संपत्ति श्रीपाल को मिल सकती थी । यूँ भी वहाँ धवल का कोई परिवारजन तो था नहीं और श्रीपाल सब कुछ रख लेते तो भी कोई ऊंगली करनेवाला नहीं था, फिर भी धवल के वारिसदार की तलाश करवा कर सब सुपूर्द कर दिया ।
५) स्वयंवर मंडप और राधावेध के प्रसंग में राजाओ से युद्ध में श्रीपाल जीत जाते है पर किसी का भी राज्य लेने की इच्छा नहीं रखते ।
६) अपना राज्य लौटाने की मीठी मांग से क्रोधित हुए अजितसेन काका युद्ध करके, श्रीपाल को अपने ही हाथों मारने के रौद्रध्यान की आग में जल रहे हैं। युद्ध में श्रीपाल जीत जाते है, पिता का राज्य और अजितसेन काका का राज्य-दोनो श्रीपाल के हो गए है, पर श्रीपाल उसी युद्धभूमि पर
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा