Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 88
________________ दीनता-दोष को हटाने के लिए शौर्यभाव, खुमारी चाहिए । जो भी परिस्थिति आए, उसे हँसते मुख से स्वीकारे, कभी अकेलापन महसूस नहीं करे । संसार का स्वरुप सोचे कि, संसार दुःखमय है तो सुख कहाँ से मिलेगा? ऐसा सोंचे कि जो संयोग मिले है उनका उपयोग कर आत्मसाधना करनी है, ऐसी खुमारी वाला हमेशा आर्तध्यान से मुक्त रहता है । __ आचार्यपद की आराधना से जीवन में खुमारी, शौर्यता आती है । शासन की धुरा वहन करनेवाले आचार्यपद का ध्यान पीले वर्ण से करना है । पीला वर्ण शूरवीरता का प्रतीक है । आचार्य भगवंत दीनतारहित संयम साधनापूर्वक, शूरवीर बनकर शासन पर आने वाली आपत्तियों का सामना करते है । जीवन में कई छोटी-मोटी समस्याएँ रोगादि आपत्तियाँ आती है, ऐसे समय वो आर्तध्यान में नही डूबते है । परिस्थिति को दुःख रहित स्वीकारते है । वो समझते है कि कर्मोदय है, ऐसे समय में जो भी हो सकता हो, वो कार्य-आराधना कर लेनी चाहिए । श्रीपाल किससे उंबर राणा बने ? पुण्य का पासा पलटा तो सब चला गया । सत्ता, संपत्ति, वैभव, परिवार सबसे जुदा हो गए । शरीर में कोढ़ रोग हो गया, माँ भी बिछुड़ गई, पर मैं अकेला हूँ, सारे पड़ोसी मेरा तिरस्कार करते हैं, ऐसा विचार भी नहीं करते । सात सौ कोढ़ियों के समूह में घूमते है । उन्हे राणा बनाया है, सब रानी की खोज में है । कितने ही राज्यों में घूम आए है, उंबर ने कहीं दीनता नहीं दिखाई । 'मैं राजपुत्र हूँ, सब चला गया है, काका रक्षक के बदले भक्षक बन गए । आप मुझे राजकन्या दीजिए' । ऐसा कुछ नहीं बोलते, कहीं अपनी पहचान नहीं बताते । जो परिस्थिति है उसे स्वीकारने का शौर्य उंबर में दिखाई देता है । पिताजी का राज्य प्राप्त करने का अवसर आया तब अपने बाहुबल से ही लेने की खुमारी के साथ संपत्ति पाने के लिए अकेले ही धनोपार्जन करने निकले । सत्व और शौर्य उनके जीवन-प्राण थे । दो-दो बार उनकी नजर के सामने सब कुछ चला गया । (१) काका ने राज्य छीन लिया, जंगल में भटके, कोढ़ी बने । (२) धवल ने श्रीपाल की संपत्ति, स्त्रियाँ हथियाने के लिए श्रीपाल को समुद्र में डाल दिया, तो भी दोनो प्रसंगो में किसी श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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