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काम कर गए । वो पूर्वभव में १२ व्रतधारी श्रावक थे ।
अजितसेन भी पूर्वभव से वैराग्य और त्याग के संस्कार लेकर आए है, पर पिछले भव के श्रीपाल के साथ वैरानुबंध के कारण श्रीपाल का राज्य ले लेते है । जान से मार देने के लिए युद्ध भी करते है । अजितसेन हार जाते है, पर श्रीपाल उनके बंधन छुड़वाकर राज्य लौटाते है । अब अजितसेन को गुणानुराग जागता है, पूर्वभव का वैराग्य जाग जाता है और वहीं युद्धभूमि में ही संयम का स्वीकार लेते है ।
अजितसेन हमे कह रहे है कि, धर्म आराधना करते रहो, शुद्धभाव से कर दृढ़ संस्कार डालो, जो भवांतर में किसी कर्म के उदय से विकट स्थिति में से निकालकर मोक्षमार्ग में स्थापित कर देंगे।
श्रीपाल ने भावपूर्वक नवपद आराधना की जिससे नौ का अंक फलीभूत हो गया । __ • मयणा वगैरह नौ रानियाँ
• त्रिभुवन आदि नौ पुत्र • नौ हजार हाथी, नौ हजार रथ • नौ लाख जातिवान घोड़े • नौ करोड़ पैदल सेना • नौ सो वर्ष का आयुष्य • नौंवे भव में मोक्ष
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा