Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ सात मंजिल की हवेली में छत पर गहरी नींद सोए है। धवल उपर चढ़ते चूक जाता है । वहाँ से लुढकते हुए नीचे गिरता है, और हाथ में रही कटारी पेट के मर्म स्थान में लग जाती है । श्रीपाल को मारने जाते खुद मर जाता है । I आत्मा (श्रीपाल) को हैरान करनेवाला मोहनीय कर्म (धवल) कब मरता है ! श्रीपाल सात मंजिल की हवेली की चांदनी (छत) यानि आठवी मंजिल पर सोए है, लीन है । आत्मा जब ८ वे गुणस्थानक पर अपने में लीन बनता है (क्षपक श्रेणि पर चढ़ता है) तब मोह को मरना पड़ता है। (अभी तक श्रीपाल ८वी मंजिल पर नहीं सोए थे) मात्र अंतर्मुहर्त में मोह स्वयं नष्ट हो जाता हैं । श्रीपाल एक वर्ष में आठ पत्नियों के साथ लग्न करते हैं । आठ स्त्रियॉ श्रीपाल को वरी हैं । ऐसे आत्मा भी अविरत गति से साधना में आगे बढ़े तो सिर्फ एक वर्ष के समय में अष्ट महासिद्धियाँ साधक का वरण ( प्राप्त) कर सकती है । इस तरह विविध दृष्टिकोणों से इस कथा पर अधिकाधिक चिंतन किया जा सकता है । लगभग सभी कथाओं में ऐसे तत्व समाहित होते ही है, यदि चिंतक की दृष्टि स्पर्शे, तो अनेक तत्त्व मिल सकते हैं । समूह आराधना - अनुमोदना श्रीपाल के पूर्वभव में श्रीकान्त - श्रीमती द्वारा की गई सिद्धचक्र की आराधना की अनुमोदना श्रीमती की आठ सखियों और श्रीकान्त के ७०० सैनिकोने की, जिसके प्रभाव से दूसरे भव में अलग-अलग स्थान पर जन्मे तमाम जीव एक साथ इकट्ठे हो गए । साथ में की गई आराधना और समूह में होने वाली अनुमोदना का यह प्रभाव है । परिवार - स्वजन या आराधक मित्रों के साथ आराधना- अनुमोदना की जाए तो भवान्तर में साथ मिलकर पुनः समुह आराधना कर सब साथ में मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ते रहे । यह संदेश श्रीपाल कथा से प्राप्त होता है । 58 श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108