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8. श्रीपाल कथा का रचना कौशल
जिनशासन में चार अनुयोग के विभाजन द्वारा तमाम प्रकार के जीवों को आत्म-चारित्र भाव में स्थिर करने की पद्धति है । उनमें बालजीव जो आत्मा, सिद्धात्मा या परमात्मा का स्वरुप नहीं समझे हैं और तीव्र मेघा शक्ति रहित है, ऐसे जीवों के लिए कथानुयोग सर्वश्रेष्ठ माना गया है । सत्-असत् प्रवृत्ति के फल सुनकर सत् प्रवृत्ति में स्थिरता आए और असत् प्रवृत्ति से निवृत्ति हो, यह धर्मकथा का फल है।
धर्मकथानुयोग में श्रीपाल कथा बालजीवो को अत्यन्त आकर्षित करे ऐसी कथा है, क्योंकि उनका रस पुद्गल में है । वो संपत्ति, सत्ता, कौतूहल की बात आती है, तो खुश हो जाते है । श्रीपाल कथा में कोढ़ी उंबर और पिता द्वारा कोढ़ी के साथ विवाहित मयणा को सिद्धचक्र के प्रभाव से अपार ऋद्धि-समृद्धि के साथ अखंड साम्राज्य भी मिलता है. ऐसी बात सुनकर पढ़कर बालजीव भी धर्माराधना की ओर बढ़ते है ।
पूर्वागम के आधार पर रची हुई यह श्रीपाल-कथा तो अद्भुत है ही, साथ साथ पूज्य आचार्य देवश्री रत्नशेखरसूरीश्वरजी म. की रचना शक्ति भी अद्भुत है । पूज्यश्री ने धन, संपत्ति, वैभव, विवाह और सत्ता की बातें भी इस तरह से की है, कि बालवाचक और बालश्रोता का मन बार बार सिद्धचक्रनवपद की तरफ जाता है, और उनका हृदय नवपद में स्थिर हो जाता है । आठ स्थानों पर नवपद का वर्णन और जगह-जगह सिद्धचक्र का स्मरण करवा कर श्रोताओं को सुषुप्त मन तक ले जाकर नवपद को मानस में स्थिर
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा