Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 49
________________ कालांतर में अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ । आत्मकल्याण का मार्ग खुल गया है । अजितसेन कहते है, "भले ही भूतकाल भयंकर था, जाग गए तो बच गए । आत्मजागृति तमाम दोष दूर कर अवश्य आत्म-कल्याण करेगी।'' हम जन्मतः गुणवान नहीं है, इससे श्रीपाल की कक्षा में नहीं आ सकते तो हमें क्या बनना हैं ? अजितसेन की तरह जागृति भाव आ गया तो कल्याण वरना धवल की तरह आखिर तक नहीं जागे तो गए काम से । दुर्गति हमारे लिए तैयार है। धवल उपकारी के उपकार भूल चूका है । श्रीपाल ने धवल को अपने महल में रखा है । श्रीपाल सात मंजिल की हवेली की छत पर सोए है । धवल को भयंकर रौद्रध्यान हो रहा है । आज तो श्रीपाल को मेरे हाथों ही परम धाम पहुँचा दूं तो ही मुझे शांति होगी । हर योजना निष्फल हो जाती है और श्रीपाल बच जाते हैं । आज तो सोए हुए को ही खत्म कर दूं, ऐसा सोचकर खुली कटार लेकर ऊपर चढता है । शरीर ऊपर जा रहा है, अध्यवसाय नीचे नीचे जा रहे हैं । मारो..काटो...के भाव हैं । बिचारे धवल को कहाँ पता है कि कितनी भी योजना बनाई जाए पर पुण्य तो श्रीपाल के पक्ष में ही है । जब तक पुण्य बलवान है, तब तक मेरा ही नुकसान है । ___ जीवन में कभी किसी का बुरा करने की इच्छा हो तो इतना जरुर सोंचना कि इसका पुण्य है, तब तक मैं कुछ नहीं कर सकने वाला हूँ । केवल निष्फलता देखकर परेशान होना है और ऐसे विचारों से भयंकर कर्मबंध कर दुर्गति और दुःख ही खड़े करना है । दूसरो को नुकसान पहुँचाने से सामने वाले का बिगड़े या नहीं बिगड़े, अपना तो बिगड़ता ही है । कभी किसी का खराब करने का विचार भी नहीं करना चाहिए । हर व्यक्ति अपने पुण्य से कमाता है, आगे बढ़ता है । इस विचारधारा से जीवन की कई समस्याएँ दूर हो जाती है। धवल में यह समझ नहीं है, इसलिए श्रीपाल के पीछे पड़ा है । खुली कटारी लेकर सीढ़ियां चढ रहा है, दुष्ट विचार चल रहे है, अचानक सीढ़ी श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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