Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 23
________________ बात स्थिर है कि पचाने की शक्ति से अधिक लेने से कौन सुखी हो सकता है। उंबर सोंचता है कि मेरी ऐसी खराब परिस्थिति में यह सब अनुचित हो रहा है । भले ही घोषणा करने का बड़ा लाभ मिला है, पर उचित नहीं है, खुश होने जैसा नहीं है । उदास चेहरे से राजमार्गो से गुजरता हुआ नगर के बाहर अपने स्थान पर आते हैं । योग्यता से अधिक मिल जाए तो आराधक आत्मा कभी खुश नहीं होता, यह संदेश उंबर दे रहे है। दूसरों के नुकसान से होनेवाला फायदा कभी इच्छनीय नहीं है। धर्म-प्राप्ति की पूर्व भूमिका कैसी होती है? यह उंबर के जीवन से मिल सकती है । हमारी स्थिति ऐसी है कि लाभ हुआ और आनंद होता है और लाभ भी पौद्गलिक लाभ । उंबर की स्थिति अलग ही है । वो पौद्गलिक लाभ की अपेक्षा से ही घूम रहे है । ज्यादा मिला है तो भी उदास है । स्थान पर आते-आते शाम हो चुकी है । डेरे-तंबू में उंबर और मयणा ही है । उंबर मनोमंथन कर रहा है । जो भी घटित हुआ वो अनुचित लग रहा है । भले ही मयणा खुद आई है, प्रसन्न है, पर उंबर के हृदय में टीस है । अपने कोढ़ से मयणा का रुप-लावण्य-सौंदर्य नष्ट हो जाएगा । दूसरों के नुकशान से अपना लाभ ? यह बात उंबर का हृदय नहीं स्वीकारता । लम्बे समय तक का मौन तोडकर उंबर मयणा से कहेता है, 'देवी ! अभी भी कुछ बिगडा नहीं है । यहाँ से जाना ही श्रेयस्कर है । मेरा रोग आपका जीवनदेह-आरोग्य सब कुछ खतम कर देगा । इसलिए यहाँ से जाकर उचित स्थान ढूंढ लेना । यहाँ उंबर की मनोदशा विचारणीय है । कितनी मेहनत से कन्या मिली है, इसे भेजने क बाद दूसरी मिलेगी या नहीं ? यह प्रश्न तो खड़ा ही है । 'यह तो मेरे मना करने पर भी सामने से मिली है, तो भले इसका नसीब' ऐसा विचार उंबर को नहीं आता । अंतर में मात्र परहित चिंता ही बसी है। अपना बड़ा लाभ छोड़कर भी दूसरों का नुकसान रोकने के लिए तैयार है । यह भूमिका मंद मिथ्यात्व की है । धर्मप्राप्ति के पूर्व ही हृदय का कोमल होना आत्मविकास की भूमिका है। श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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