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देवीदर्शन किया है, सतीत्वदर्शन किया है । वास्तविक दृष्टि से पूरी रात का वार्तालाप गौण है । इस वार्तालाप के माध्यम से एक-दूसरे के आत्मदल की ही पहचान हुई है । उंबर ने मयणा में सतीत्व-दर्शन किया और मयणा ने उंबर में सत्वदर्शन किया है । अपने बडे लाभ खोकर भी दूसरों का हित देखनेवाला यह सत्वशाली पुरुष है , महान पुरुष है । प्रथम रात्रि में दोनों ने एक-दूसरे का देहदर्शन नही, आत्मदर्शन किया है ।
उंबर उंबर है, भले कोढी है, वो कुछ नहीं करते, उनका गुणसमृद्ध आत्मदल ही ऐसी प्रवृति करवाता है । उनकी हर प्रवृत्ति पर विचारधारा या हर निर्णय के पीछे कोई न कोई रहस्य छिपा है । मयणा के जिनालयगमन के कथन से उंबर तैयार हो जाता हैं । वैद्यराज के यहाँ जाने की या अन्य कोई बात नहीं करते है । यह व्यावहारिक दृष्टि से थोडा अनुचित लगे पर उंबर कहते हैं कि सतीत्व की परीक्षा होने के बाद कोई तर्क नहीं, एक मात्र सतीत्व के कारण वचन मानने वाले होने पर भी उंबर पत्नि-दीवाने नहीं बने । वो संपूर्ण सावधान हैं । जब श्रीपाल परदेस कमाने जाने की बात करते हैं, मयणा साथ जाने का प्रस्ताव रखती है पर श्रीपाल सजाग है । परदेशगमन के समय में श्रीपाल मयणा को स्पष्ट मना करते है। श्रीपाल कितने व्यवहारदक्ष थे । माँ अकेली है, उम्र हो गई है, सेवा के लिए मयणा को छोड जाते है । यहां उंबर कहते है 'जहाँ सतीत्व-वहाँ सद्भाव , कोई तर्क-दलील नहीं, परंतु स्त्री के पीछे पागल भी नहीं बनना । जहाँ श्रद्धा वहाँ सर्वस्व, समर्पण वहाँ चमत्कार।
मयणा के कहने से उंबर प्रभु के दर्शन करने जाते हैं । उंबर ने जीवन में पहली बार ही प्रभु के दर्शन किए है । अरिहंत प्रभु कैसे है । उनके गुण कैसे है ? उनकी स्तुति कैसे की जाती है ? कुछ पता नही है, फिर भी चमत्कार होता है । प्रभु के कंठ में रही हुई माला और हाथ में रहा बीजोरा उछलकर उंबर के पास आता है । ऊपर की दृष्टि से लगता है मयणा की श्रद्धा, अग्निपरीक्षा फली, मगर थोडी गहराई में जाएँ। दोनो चीजें उंबर के
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा