________________
निर्णय हो गया है, तब भी उंबर अपनी सच्ची भी बडाई नहीं करता है, कि मयणा ! अभी में रोगी हूँ तो क्या हुआ, वैसे तो राजपुत्र हूँ। तुं किसी हालीमवाली के के साथ नहीं आई है । इतना भी कहा होता तो मयणा को कितनी शांति मिलती ! पर उंबर इस विषय में मौन है । उंबर समझते है कि ऐसी बातों में केवल स्वप्रशंसा ही है । उंबर-श्रीपाल ने जीवन में कहीं भी अपनी जात नहीं खोली है । सिर्फ अपना परिचय ही दिया होता तो भी कई जगह समाधान या सरलता हो जाती । कोढ रोगी थे तब, स्वयंवर में या चांडाल होने का कलंक लगा तब भी कहीं भी श्रीपाल ने अपना परिचय नहीं दिया । सभी प्रसंगो में महत्त्वपूर्ण प्रसंग यह है । मयणा अपना पूरा जीवन होम करने के लिए तैयार हो गई है, तो भी श्रीपाल ने परिचय नहीं दिया है । वर्तमानकाल में जो स्थिति है उससे न तो आगे-पीछे हुआ और नहीं कुछ बोला । यह उच्च कोटि की गंभीरता है । तब मयणा ने भी पूछा नहीं कि आप कौन है । रोग मिटने के बाद भी कुछ पूछा नहीं । गुण में गुण मिल जाते है । मयणा की यह धीरता है, धीरता की पराकाष्ठा है जो धर्मी का लक्षण है । धर्मी बनने का यह महत्त्वपूर्ण गुण है । उंबर हमे कहते है गंभीर बनो । सत्य ही होने पर भी सब बोला नहीं जाता । धर्म आने के पहले ही सहज गंभीरता अंतर में प्रकट होती है । सती की बात पर न तर्क, न दलील ।
सुबह होते ही मयणा ने युगादि देव को जुहारने की बात कही, उंबर तैयार हो गए । उसके साथ चले । कोई तर्क, दलील या अन्य बात नहीं । पूरी रात मयणा के रुप लावण्य की चिंता करने वाले उंबर ने मयणा के परिचित राजवैद्य के पास जाकर उपचार की बात भी नहीं की । मयणा की सुरक्षा के लिए भी रोग का उपचार अब जरुरी हो गया था । मयणा के पास गहने हैं, राजवैद्य का परिचय भी है तो भी उंबर कुछ नहीं बोलते है । मयणा के साथ जिनालय जाते है । एक स्त्री की बात मौनपूर्वक स्वीकार लेते है ।
रात के वार्तालाप द्वारा उंबर ने इस राजकन्या में देहदर्शन नहीं
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा