Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 24
________________ उंबर की बात सुनकर मयणा की आंखों से सावन-भादों बरसने लगते है । कहीं नहीं रोई मयणा यहाँ रो-रोकर मना करती है । 'पंच की साक्षी में पिता की आज्ञानुसार एक बार जिसे पति के रुप में स्वीकार किया वहीं जीवनपर्यंत रहेंगे ।' मयणा की ऐसी दृढता होने पर भी उंबर अलग-अलग तरीके से मयणा को समझाने का प्रयत्न करता हैं । मयणा अपनी बात छोडने के लिए राजी नहीं है । वो कोढी पति को आजीवन स्वीकारने के लिए तैयार है । पूरी रात उंबर का चित्त व्यथित रहा । बातों बातों में सुबह हो गई । सूर्यदेव को भी जैसे ख्याल आ गया कि दोनो जन नहीं, सज्जन है, मानव नहीं, महामानव है । अपना बडा लाभ गवाँकर परचिंता मग्न यह महापुरुष है, और जीवन का बलिदान देने वाली यह शीलवती नारी है। उंबर पूरी रात केवल मयणा को नहीं, हमें भी समझाते हैं कि, दूसरो के नुकसान के बदले कभी लाभ नहीं उठाना चाहिए । निकट भविष्यमें निश्चित ही सच्चा धर्म मिलेगा। गंभीर बनिए, धीर बनिए। उंबर के भीतर में सहज रहे गुणों का विचार चल रहा है । उंबर धर्मी नहीं है, धर्म क्या है ? उसे पता नहीं है, लेकिन आंतरिक परिणति की शुद्धि सहज भाव से है । उपजाऊ जमीन में बीज गिरता है, तो फलता-फूलता ही है । वैसे ही आंतरशुद्धि वाले जीव को धर्म मिलता है तो फलता ही है । उंबर को भले धर्म नहीं मिला पर भूमिका-शुद्धि जोरदार थी । (हमें धर्म मिला है, पर परिणति शुद्ध नहीं है । महान् कौन ? हम या उंबर ? यह हमे ही निश्चित करना है। पूरी रात वार्तालाप चला। मयणा को होनेवाला नुकसान उंबर को मंजूर नहीं था और मयणा उंबर को छोड़ने के लिए राजी नहीं थी । इसी जद्दोजहद में रात पूरी हो गई पर यहीं से शुरु हुआ उंबर और मयणा का जीवन । धर्म मिलने से पहले ही गंभीरता गुण आना है और उच्छृखल वृत्ति जाती है । उंबर की गंभीरता गजब की है । अब मयणा जानेवाली नहीं है यह श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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