Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 22
________________ पहुँचा। रास्ते में प्रजापाल राजा मिले । उनके आगे 'मूंगी-बहरी-अपंगरोगी या हीनकुल की कन्या की ही यथोचित मांग रखी । प्रजापाल राजा ने राजदरबार में बुलाकार सोलह-श्रृंगारों से सजी अप्सरा जैसी राजकन्या मयणा देने की बात कही। उंबर को तो पत्थर लेने जाते रत्न मिल गया । गाँव गाँव में दैव रुठा था, यहाँ तो साक्षात् दैव प्रसन्न हो गये । सौ-दोसौ रुपये मिलने की गिनती हो और करोड़ो रुपये मिल जाए तो कितनी खुशी हो ? इंसान नाचने लग जाए, लेकिन उंबर मना कर रहा है । प्रजापाल राजा ने जैसे ही मयणा की बात रखी, तुरंत ही उंबर ने कहा 'न शोभे काक कंठे मुक्ताफल तणी माला' उंबर मयणा का स्वीकार करने से इंकार कर रहा है । लाभ कितना भी बड़ा हो, पर मेरी पचाने की योग्यता नहीं है । पचाने की ताकत नहीं हो तो अजीर्ण हो जाता है, यह बात उंबर समझता था । राजकन्या मयणा के सिवाय पुनः वो पहले वाली बात ही दोहराता है । योग्यता से अधिक मिले तो स्वीकार नहीं करना, इस प्रसंग में उंबर राणा यही कर रहा है । योग्यता से अधिक नहीं स्वीकारने पर भी मिल जाए तो खुश नहीं होना – उंबर ने प्रजापाल राजा को मयणा के लिए मना किया, यह अनुचित हो रहा है, ऐसा कहने पर भी प्रजापाल राजा के एक वचन पर मयणा ने तुरन्त जाकर उंबर का हाथ पकड़ लिया । उंबर ने हाथ खींचा पर मयणा मजबूत रही । आखिर उंबर मयणा को खच्चर पर बिठाकर उज्जैन के राजमार्गो से गुजर रहे है । मयणा का भावि अंधकारमय है । राजाशाही भोग-विलास के स्वप्न बिखर गए हैं । दुःखपूर्ण स्थिति होने के बावजूद कर्मसिद्धांत और पितृ-वचन का पालन का पूर्ण संतोष-आनंद है । इसके विपरीत उंबर को लम्बे समय के बाद बहुत मेहनत करने पर कन्या की प्राप्ति की अपेक्षा पूरी हुई है । कन्या भी देवी जैसी सुंदर और सुशील है । अपेक्षा से कई गुना लाभ मिला है । इस अवसर पर आनंद की अवधि ही नहीं रहनी चाहिए, लेकिन उंबर गमगीन है । मन में खिन्नता है । उनके अंतर में यह श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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