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पहले उजास होता है । ऐसे भावधर्म मिलने के पहले गुण का उजास होता है, उघाड़ होता है । उंबर को अभी धर्म नहीं मिला है, मिथ्यात्व मंद है । मंद मिथ्यात्व की भूमिका पर आराधक भाव को खींचकर लाने वालें प्रकट होते है; यह बात उंबर के माध्यम से समझना है ।
गुण सहज
उंबर हमे कहते है, ''जो भी स्थिति आती है, उसका स्वीकार कर लो, भागो मत । हर परिस्थिति कर्म के आधीन है, और कर्म हमने ही किए है; स्वीकार में ही मजा है, निर्जरा है । प्रतिकार मत करो । प्रतिकार में सजा है, आश्रव-कर्म का ही बंध है, इसलिए सामने से आनेवाली परिस्थिति का समभाव से, आनंद से स्वागत कर लो, यह आराधक भाव की भूमिका है । वर्तमान योग्यता से अधिक अपेक्षा नहीं रखना ।
उंबर मूल `तो राजकुमार है । राज्याभिषेक हो गया है पर सगे काका के कारण विकट परिस्थिति हो गई है । राज्य-परिवार-धन- -वैभव– संपत्ति-सत्ता सब गुमाया है, तंदुरस्ती भी खोई है । सात सौ कोढ़ियो के साथ रहना पड़ा है । उन्होंने अपना नायक बनाकर उंबर राणा नाम रखा है । उम्र हो गई है । गाँव गाँव कन्या की शोध में घूम रहे है । गूंगी- लूली- लंगडीदासी - रोगी कन्या की याचना कर रहे है
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उंबर राणा को ख्याल है कि मैं राजबीज हूँ, राजा हूँ, भविष्य में राजा बनने के अरमान भी अंतर में बसे है । फिर भी उंबर ने कभी राजकुमारी की मांग नहीं की है । ऐसी-वैसी ही कन्या मांगी है । उंबर मानते है - अभी मेरी परिस्थिति ही ऐसी है कि वर्तमान काल की योग्यता से अधिक अपेक्षा रखूँगा तो दुःखी ही होनेवाला हूँ । इच्छा करना, पर अपनी योग्यता से अधिक नहीं करना, यह समझ हीं आराधक की योग्यता है । उंबर कहते है, 'श्रीपाल बनना है, तो योग्य भूमिका से आगे बढ़कर इच्छा नहीं करना । योग्यता से अधिक मिल जाए तो स्वीकार नहीं करना ।
उंबर और सात सौ कोढ़ियो का टोला घूमते घूमते उज्जैन आ
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा