Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 39
________________ से पुनः मिला है । जब तक पुण्य है तब तक टिकेगा, शंका-कुशंका या आर्तध्यान करने से क्या मतलब । श्रीपाल कहते है, 'पुण्य पर भरोसा करो, पुण्य ही बलवान है, दूसरो पर अविश्वास या शंका मत करो ।'' भाग्य आजमाने के लिए सबको मौका दो। रत्नसंचया नगरी में जिनमंदिर के द्वार बंद हो चुके है। राजकुमारी के योग्य पुण्यवान व्यक्ति की दृष्टि से ही मंदिर के द्वार खुलेंगे, ऐसी देववाणी हो चुकी है । श्रीपाल रसाले के साथ इस कौतुक देखने जाते है । जिनालय के समीप पहुंचकर श्रीपाल सबसे कहते हैं सब अपना भाग्य अजमाओ । क्रमशः सबको जिनालय सन्मुख भेजते है । यूँ तो नगरजनो ने भाग्य आजमा कर देखा पर सब निष्फल हो गए, तो भी श्रीपाल साथ वाले सभी को भेजते हैं. किसी की दृष्टि से द्वार नहीं खुलते । आखिर में श्रीपाल की दृष्टि से ही खुलते हैं और कनककेतु राजा राजपुत्री मदनमंजूषा का विवाह श्रीपाल से करते है। श्रीपाल के मन में उदात्त भावना है । कहीं भी स्वार्थ की भावना या सब मै ही ले लूँ की भावना नहीं है । जिसके भाग्य में होगा उसे मिलेगा, ऐसा श्रीपाल मानते हैं । जिसका भी भाग्योदय होगा उसमें श्रीपाल को आनंद है । न ईर्ष्या है, न व्यग्रता है । आराधक आत्मा कैसी होनी चाहिए, यह श्रीपाल की हर एक प्रवृत्ति में, हर प्रसंग में झलक रहा है। श्रीपाल कहते है सबको आगे करो, सब आपको आगे करेंगे। बाजार में कोई बड़ा व्यापारी बाहर से आया हो और केवल एक ही सौदा करके तुरंत निकल जानेवाला हो और सौदा करनेवाले को जबर्दस्त फायदा होगा यह स्पष्ट दिखता हों तो आप क्या करेंगे ? पहले सबको जाने देंगे या स्वयं जाएंगे? अपनी और श्रीपाल की मनोदशा में कितना अंतर है? वैभव-संपत्ति में डूबना नहीं। श्रीपाल की बढती संपत्ति दो-दो राजकुमारीयों के साथ लग्न, दहेज में मिली अपार संपत्ति देखकर धवल को श्रीपाल से अत्यंत ईर्ष्या होती है । श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा 23

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