Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 37
________________ श्रीपाल कहते हैं, 'कुलादि जाने बिना पूत्री नहीं दी जाती ।' महाकाल कहता है, 'आचार से ही कुल का पता चल जाता है ।'' यहाँ भी श्रीपाल पहले तो विवाह का इनकार ही करते हैं । राजा आनंद के आवेग में ऐसे अज्ञात व्यक्ति को तो अपनी बेटी नहीं दे रहा है, यह तलाश करते है । यहाँ एक प्रश्न होना स्वाभाविक है कि श्रीपाल प्रजापाल के सैन्य से राज्य जीतना नहीं चाहते, महाकाल का राज्य मिल गया तो स्वीकार नहीं करते तो कोंकण प्रदेश की ठाणा नगरी के राजा वसुपाल जब अपना राज्य देकर राज्याभिषेक की बात करते है तो श्रीपाल क्यों स्वीकारते है ? इस राजा की पुत्री मदनमंजरी भी श्रीपाल का विवाह हुआ है तो ससुर का राज्य क्यों स्वीकार किया। उत्तर : श्रीपाल ने श्वसुर पक्ष के कारण राज्य नहीं स्वीकार पर वसुपाल राजा श्रीपाल के मामा हैं । इससे वसुपाल और श्रीपाल के बीच मामा-भांजे का रिश्ता है । धवल सेठ ने चांडाल का कलंक लगाया । श्रीपाल को पकडने जाते युद्ध हुआ । श्रीपाल का शौर्य देख वसुपाल ने परिचय पूछा तब श्रीपाल के कहने से जहाज में से दोनो स्त्रियों को बुलाया और परिचय जाना । रत्नद्वीप में मदनसेना और मदनमंजूषा ने चारण मुनि के पवित्र मुख से श्रीपाल का परिचय जाना था । उनके कहने से राजा को पता चला कि यह तो मेरी बहन का पुत्र है और आनंदित होता है । वसुपाल राजा के पुत्र नहीं है; राज्य किसे सौंपना ? यह प्रश्न है, इससे अपने भांजे का राज्याभिषेक कर श्रीपाल को राजा बनाते हैं । श्रीपाल यहाँ व्यावहारिक बात बताते हैं कि समर्थ व्यक्ति को ससुर से कुछ नहीं लेना चाहिए, दूसरे का भी नहीं लेना चाहिए, पर मामा जो दे वो सब कुछ लिया जा सकता है । भानजे को मामा से जितना मिले उतना कम है। इस व्यवहारिक बात बात को महत्त्व देकर मामा वसुपाल का राज्य स्वीकारा है। पुण्य पर पूरा भरोसा धवल और श्रीपाल के जहाज रत्नद्वीप पहुँचे है । वहाँ जोरदार श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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