Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan

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Page 36
________________ दूसरों का मिल जाए तो भी लेना नहीं श्रीपाल राजा बनने के अरमान लेकर कमाने निकले है । साधक रससिद्धि दे रहा था तो भी नहीं ली । भरुच में धवल सेठ के साथ यात्रा में जुडे है। जहाज बब्बर कुल पहुँचे । धवल शेठ कर नहीं चुकाते इसलिए वहाँ के महाकाल राजा ने युद्ध कर धवल को बंदी बना लिया और पेड पर उल्टा लटका दिया है । धवल की संपत्ति जब्त कर राजा नगर में जा रहा है । धवल ने आधी संपत्ति श्रीपाल को देने की बात कर छुडाने की विनंती की । श्रीपाल महाकाल राजा के पीछे जाकर उसे ललकारते हैं, दोनों में युद्ध होता है । एक और अकेले श्रीपाल है, दूसरी ओर राजा और पूरा सैन्य है पर थोडी देर में महाकाल राजा हार जाता है । श्रीपाल उसे बांधकर समुद्र के तट पर धवल के सामने लाते है। धवल के जहाज छुडवाकर महाकाल राजा को उनका राज्य लौटा देते है । ___ श्रीपाल को राजा बनने के अरमान है । राजनीति अनुसार श्रीपाल राजा बन सकते है। अपने बाहुबल से उन्होंने महाकाल राजा को हराया है, अगर वो चाहते तो राजनीति के अनुसार अपना राज्याभिषेक करवा सकते थे पर वो राज्य जीतने के बाद भी राज्य लौटा देते हैं । यहाँ श्रीपाल को विचार भी नहीं आता कि मैं राजा बन जाऊँ । यहाँ श्रीपाल पैगाम देते है कि आराधक आत्मा दूसरों की संपत्ति को अपनी करने में कभी राजी नही होता । श्रीपाल को दूसरों का राज्य लेने में आनंद नहीं है, स्वसाम्राज्य की ही चाह है । श्रीपाल ने महाकाल राजा से कहा होता कि आपका सैन्य लेकर अजितसेन काका से युद्ध करना है तो महाकाल स्वयं भी युद्ध करने साथ आते । महाकाल श्रीपाल को उपकारी मानता है, पर श्रीपाल का संकल्प तो अपने सामर्थ्य से साम्राज्य प्राप्त करना था । महाकाल राजा अपनी पुत्री मदनसेना से विवाह की बात रखते है। श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा

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