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की परिस्थिति या भावि के स्वप्न किसी के सामने कभी नहीं कहे । उंबर कहता हे कि भूत-भावि को छोडकर वर्तमान में जीना सीखो । भूतकाल को याद करोगे तो दुःखी हो जाओगे, भावि के सपनों में वर्तमान गुमाओगे । वर्तमानस्थिति को आनंद से स्वीकारना उंबर सीखाता है । आराधक आत्मा वर्तमान में ही जीता है, इससे ही साधुभगवंत 'वर्तमानजोग' शब्द वापरते
है।
जो स्थिति आए उसका स्वीकार कर लो।
__ श्रीपाल जन्मजात राजबीज है, सौंदर्यवान राजकुमार है । दो वर्ष की उम्र में राज्याभिषेक हो गया है, चारों ओर खम्मा खम्मा हो रही है । दुःख क्या होता है, पुण्य कर्म की प्रचुरता के कारण सत्ता, संपत्ति, वैभव सब मिला है, किंतु कर्म ने करवट बदली और एक ही रात में सब छोड़ना पड़ा ।
• वर्तमान जोग साधु भगवंतो के मुख से रोज सुनते है । गोचरी की प्रार्थना करने से साधु-साध्वी भगवंत वर्तमान जोग शब्द बोलते हैं । वर्तमान जोग हमारा पारिभाषिक शब्द है ।
गोचरी की विनंती के बाद गुरुमुख से सुने जाते वर्तमान जोग शब्द से कदाचित् आप ऐसा समझते होंगे कि महाराज साहेब को खप होगा तो पधारेंगे. जरुरत होगी तो पधारेंगे । नहीं, ऐसा कोई अर्थ नहीं होता । आप आहार संबंधी बात करते है, जबकि गुरुदेव गोचरी की बात छोडकर अलग ही बात करते है । गोचरी के लिए आएंगे, नहीं आएंगे, खप है, खप नहीं है – ऐसी कोई बात नहीं करते हुए सिर्फ इतना ही कहते है – वर्तमान जोग
जोग-योग यानि मन-वचन-काया अर्थात् हमारे मन-वचन-काया के योग सदा वर्तमान में प्रवर्तित होते हैं । हमारी जीवन पद्धति वर्तमान में रहने की है । भूतकाल की जुगाली नहीं करना, और भविष्यकाल के सपने नहीं देखना । दोनो काल हमारे हाथ में नहीं है । वर्तमानकाल हमारे हाथ मे हैं, उसे साध लेने में ही जीवन की सफलता है । वर्तमान काल (समय) हाथ में से निकलने के बाद लौटकर नहीं आता । यह उपदेश हमारी विनंती के जवाब में गुरुदेव बताते हैं ।
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा