Book Title: Shripal Katha Anupreksha Author(s): Naychandrasagarsuri Publisher: Purnanand Prakashan View full book textPage 8
________________ | प्रकाशकीय कथा में जब चिंतन / अनुप्रेक्षा मिलती है तब वह कथानुयोग बनता है और उस कथानुयोग में जब आत्मप्रेक्षा जुड़ती है, तब वह कल्याणकारी बनता है। श्रीपाल-कथा यूँ तो जिनशासन में आबाल-वृद्ध तक प्रसिद्ध है । हिन्दी, गुजराती, संस्कृत, प्राकृत में अनेक प्रकाशन हो चुके है, लेकिन यह अनुप्रेक्षामय पुस्तक आत्मानुप्रेक्षा बनाने वाली पुस्तकों में सबसे पहली है। ____ शासनप्रभावक पू.आ.श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी म. के शिष्यरत्न वर्धमान तपोनिधि शिष्य शिल्पी पू.आ.श्री नयचंद्रसागरसूरि म. द्वारा लिखित आराधक भाव के गुणों पर प्रकाश डालती इस पुस्तक के प्रकाशन का लाभ हमारी संस्था को मिलने का अति आनंद है, इसके लिए हम पूज्यश्री के ऋणी है। ___पुस्तक के मुखपृष्ठ को आकर्षक बनाने के लिए श्री प्रेमलभाई कापड़िया ने अपने चित्रसंग्रह में से श्रीपाल-मयणा के जीवन प्रसंग के विविध चित्र उदारता से दिए हैं, इसके लिए दिल से आभारी हैं । पू.आ.देव श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी म.सा.ने व्यस्त होने के बावजूद प्रस्तावना लिखकर हम पर उपकार किया है। वि.सं. २०१६ और २०१८ में गुजराती भाषा में दो-दो आवृत्ति प्रकाशित हुई । वाचक वर्ग और आराधक वर्ग की तरफ से इन दोनो आवृत्तिओ को सुंदर प्रतिभाव प्राप्त हुआ और साथ ही हिन्दी आवृत्ति प्रकाशित करने की मांग वाचक वर्ग की तरफ से उद्भवी और सतत मांग बनी रही । अतः सागरसमुदायवर्तिनी पू.साध्वीजी श्री पूर्णयशाश्रीजी की शिष्या पू.साध्वीजी श्री मेघवर्षाश्रीजी म.की शिष्या साहित्यरत्ना पू.सा.श्री पद्मवर्षाश्रीजी म.ने प्रस्तुत हिन्दी भाषांतर करने की विनंती पर उन्होंने सरल और रसप्रद भाषा में भाषांतर किया ।पू.साध्वीजी म.की श्रुतभक्ति की संस्था अनुमोदना करती है। पू.मुनि श्री ऋषभचंद्रसागरजी म.ने प्रुफ की जवाबदारी निभाकर प्रकाशन कार्य सरल बनाया है । उनकी श्रुतभक्ति की अनुमोदना । पूज्यश्री के चिंतन को कलम के माध्यम से अभिव्यक्ति प्राप्त होती रहे, यही शुभ भावना... - पूर्णानंद प्रकाशनPage Navigation
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