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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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एटले गुण तथा पर्यायवंत ते द्रव्य कहिये ते
द्रव्य एकना बे अने जे घणा
लक्षण छे
खंड थाय ज नही ए मूल द्रव्यनुं परमाणुना खंधने द्रव्य मान्यो छे ते उपचारें जाणवो जेनी परिणति ऋण कालमध्ये ते रूपने त्यजे नही ते द्रव्य पोतानी मूल जात त्यजे नही जेने अगुरुलघुनुं षड्गुण हानिवृद्धिरूप लक्षण चक एकटो फिरे ते एक द्रव्य अने जेने जूदो फिरे ते भिन्न द्रव्य कहियें एटले धर्म, अधर्म, आकाश ए एक एक द्रव्य छे अने जीव असंख्यातप्रदेशरूप एक अखंड द्रव्य छे. एवा जीव सर्वलोकमध्ये अनंता छे ते जीव सिद्धां वधे छे अने संसारीपणामां ओछा थाय छे पण सर्वसंख्यामां घटता वधता नथी. तथा पुद्गल परमाणु एक आकाशप्रदेश प्रमाण एक द्रव्य छे तेवा परमाणु सर्व जीवथी तथा सर्वजीवना प्रदेशथी पण अनंतगुणा द्रव्य छे. स्कंधपणे अथवा छुटा परमाणुपणे वधे तथा घटी जाय पण परमाणुपुद्गलपणे जे संख्या छे तेमां वधता घटता नथी ए निश्चयनयथी
लक्षण कयुं.
ed व्यवहार नयी लक्षण कहे छे अर्थ जे द्रव्य तेनी जे क्रियाके० प्रवृत्ति तेने करे ते द्रव्य कहियें. तेमां जीवनी शुद्ध क्रिया ते आज्ञादिक गुणनी प्रवृत्ति जेम सकल ज्ञेय जाणवा माटे ज्ञानविभागनी प्रवृत्ति एम सर्व गुणनुं जे कार्य जेम ज्ञान - गुणनुं कार्य विशेष धर्मनुं जाणवुं. तथा दर्शनगुणनुं कार्य सकलसामान्यस्वभावनो बोध अने चारित्रगुणनुं कार्य ते स्वरूपनं रमवुं इत्यादि अने धर्मास्तिकायनुं कार्य गतिगुणे परिणम्या जे जीव तथा पुद्गल तेने चालवाने सहकारी थाय एम सर्व द्रव्यनी समजण जोइ लेवी. ए लक्षण सर्व द्रव्यना जे गुण छे ते
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