Book Title: Shrimad Devchandra Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 1080
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७), जाणवू. कारण के द्रव्य, गुण, पर्यायनो परस्पर संक्रम होय नहि. पृ. ५३ मां जीव अधोगतीए या तीछों केम नथी जतो ? एना उत्तरमा मुख्य उत्तर जीवनी स्वाभाविक गति ऊर्ध्वज छे एटलं जाणवू. पृः ९८ पं. १२ "दर्शनगुणते विशेष छ,” ए स्थाने " ज्ञान गुण ते विशेष छे ” एम जाणवू. पृ. ५५० पं. १७ “ सादि अनादि अडेगतछेदरे " ए पदना अर्थमा प्रथम " अनादि " ने पछी “ सादि " ए अनुक्रम राखवो. पृ. ५५४ पं. ९ " त्रिविधवायु आधार छे" ए स्थाने त्रिवि धवलय आधार छे ” ए अर्थ संभवे. पृ. ५८५ गाथा ७ मीना अर्थमा पर्यायसमासादिकना अर्थमां ज्यां. ज्यां " सर्व " पद आवे त्यां त्यां " एकयी अधिक ” वा “ अनेक " एवो अर्थ कखो. पृ. ५९० पं. ६ “ एक कोडाकोडी" ने स्थाने " देशूण पल्योपमना असंख्यातमा भाग हीन एक कोसाकोडी" हम जाणवू. पृ. ६३५ पं. १८ " ते आहारपर्याप्त तांइज सास्वादन भावमें वरते " एम कर्तुं छे परन्तु साहलादनपणं, तो आहार पर्यातिथी आगळ शरीर पर्याप्ति सुधी होय छे कारण के आहारपर्याप्ति तो १ समय मात्र छ ने अवे अपंचेन्द्रिय जीवोने सास्वादनपणुं समय मात्र होय एम कहेवानुं प्रयोजन नहि. For Private And Personal Use Only

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