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(२७), जाणवू. कारण के द्रव्य, गुण, पर्यायनो परस्पर संक्रम
होय नहि. पृ. ५३ मां जीव अधोगतीए या तीछों केम नथी जतो ?
एना उत्तरमा मुख्य उत्तर जीवनी स्वाभाविक गति
ऊर्ध्वज छे एटलं जाणवू. पृः ९८ पं. १२ "दर्शनगुणते विशेष छ,” ए स्थाने " ज्ञान
गुण ते विशेष छे ” एम जाणवू. पृ. ५५० पं. १७ “ सादि अनादि अडेगतछेदरे " ए पदना
अर्थमा प्रथम " अनादि " ने पछी “ सादि " ए
अनुक्रम राखवो. पृ. ५५४ पं. ९ " त्रिविधवायु आधार छे" ए स्थाने त्रिवि
धवलय आधार छे ” ए अर्थ संभवे. पृ. ५८५ गाथा ७ मीना अर्थमा पर्यायसमासादिकना अर्थमां
ज्यां. ज्यां " सर्व " पद आवे त्यां त्यां " एकयी
अधिक ” वा “ अनेक " एवो अर्थ कखो. पृ. ५९० पं. ६ “ एक कोडाकोडी" ने स्थाने " देशूण
पल्योपमना असंख्यातमा भाग हीन एक कोसाकोडी"
हम जाणवू. पृ. ६३५ पं. १८ " ते आहारपर्याप्त तांइज सास्वादन भावमें
वरते " एम कर्तुं छे परन्तु साहलादनपणं, तो आहार पर्यातिथी आगळ शरीर पर्याप्ति सुधी होय छे कारण के आहारपर्याप्ति तो १ समय मात्र छ ने अवे अपंचेन्द्रिय जीवोने सास्वादनपणुं समय मात्र होय एम कहेवानुं प्रयोजन नहि.
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