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अर्थ - - त्रस्कायमे १, तीनयोग-मन १, वचन १, काययोगमे तीनवेद - पुरुष १, स्त्रीवेद २, नपुंसकवेद ३, शुक्ललेस्या १, आहारक २, मनुष्यगति १, पंचेन्द्री १, संज्ञी १, भव्यमे १, ए तेर १३, मार्गणामे सर्व १२, बारे उपयोग छे-चक्षुद्रर्शनमे, पांच लेस्यामे - कृष्ण १, नील २, कापोत ३, तेज ४, पद्म ५, मे च्यार ४ कषायमें दश १०, उपयोग छे - केवलज्ञान १, केवलदर्शन २, ए दोय उणा कीजे ॥३४॥ चउरिंदि असन्निदुअन्नाण, दंस इग बितिथावरि अचक्खू | तिअनाण दंसण दुर्ग, अनाणतिग अभविमिच्छदुगे ३५
अर्थ- चौरेन्द्री में १, असंज्ञीमे १, मतिअज्ञान १, श्रुतअज्ञान १, चक्षुदर्शन १, अचक्षुदर्शन १, ए च्यार ४ उपयोग छे- एकेन्द्री में १, बेन्द्री में १, तेंदीमे १, पांच थावरमें ५, ए आठ मार्गणा में दोय २, अज्ञान १, अचक्षुदर्शन ए तीन ३ उपयोग छे. अने त्रण अज्ञान ३ मे अभव्यमें १, मिच्छदुगे मिथ्यात्वमे १, सास्वादनमे १, ए छ ६ मार्गणामें पांच उपयोग छे-३, अज्ञान अने वे दर्शन ए पांच मंति अज्ञान १, श्रुतअज्ञान २, विभंगज्ञान ३, चक्षुदर्शन ४, अचक्षुदर्शन ५, ए पांच छे. ॥ ३५ ॥
केवल दुगे fragi, नव ति अनाण विणु खईय
अहक्खाए ।
दंसण नाणतिगं देसे, मीसिअन्नाण मीसं तं ॥ ३६ ॥
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