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श्री देवचंद्रजीकृत छटक प्रश्नोत्तर.
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न हुवे तो सर्व प्रदेशने इंद्रियज्ञान वेत्तापणो किम थाये ? तेमाटे इम सदहवोनिर्धार छे. इहां इंद्रियक्षयोपशमना माननो अधिकार छे, तेह मध्ये युक्ति अनेक उपजे. पण नव भेदे धावा ते सर्व आगम रीते सापेक्ष छेजी. अथवा “ यद्यपि अमिलाप्यानां भावानामनंतभागं एवश्रुतनिबद्धस्तथापिप्रसंगतः सर्वेऽप्यमिलाप्याः श्रुतविषयं न जानंति इति उच्यते” ए पाठ भगपती टीका मध्ये आठमे शतके उद्देशे २ छे. सा. हरखचंद दल्ला प्रश्न पूछयो मकसूदावादथी जे पुद्गलपरमाणुने विषे वर्णादिक परिणमे छे ? तेहनो उत्तर " कारणमेवतदंत्यसूक्ष्मनित्यश्वभवति परमाणु: एकरसवर्णगंधाद्विस्पर्शः कार्यलिंगीच" ए तत्त्वार्थवृत्तिनो वचन छे, जे सर्वखंधनो अंत्य कहेतां छेहलो कारण छे एटले व्यणुकादि सर्वखंध परमाणुथी नीपजे पण परमाणुनो कोइ. कारण नथी ए अनादिअनंत शास्वत सिद्धद्रव्य छे ते सुक्ष्म छ तेहनो परमार्थ जे एक जीवनो एक प्रदेश, तथा आकाशनो एक प्रदेश तथा परमाणु एक सर्वनी अवगाहना तुल्य छे. पण एक आकाशप्रदेशमध्ये एक जीवना असंख्याता अने अनंताजीवना अनंताप्रदेश मावे, एक प्रदेशे कर्मवर्गणापणे परिणम्या अनंता परमाणु समाइ रहे. ते माटे आकाशप्रदेशथी आत्मप्रदेश समाय वे सूक्ष्म छे, अने आत्मप्रदेशथी परमाणु समाय ये सूक्ष्म छे, तेमाटे सर्वथी परमाणु सुक्ष्म छे, तथा ते परमाणु द्रव्यपणे नित्य छे. ते एक परमाणुमे एकवर्ण, एक रस, बे फरस हवे, ते मध्ये फरस लूखो तथा चीकणो, उन्हो तथा ताडो, ए च्यार महिला बे हवे. लुखो उन्हो ए बे अथवा लुखो ताडो ए बे अथवा चीकणो उन्हो ए बे, अथवा चीकणो टाढो ए में ए रीते हवे. तेजे परमाणु श्वेत वर्ण हवे ते विश्रसापरि.
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