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श्रीदेवचन्द्रजीकृत छुटक प्रश्नोत्तर.
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वरण छे. सिद्धसमान छे. केवलज्ञानादिक अनंतगुण निरावरण छ, तिहां वळी पूछयो जे आठप्रदेश निरावरण, केवलज्ञानमयी छे तो लोकालोक कां जाणता नथी ? तिहां उत्तर जे पंचास्तिकाय मध्ये जड च्यार अस्तिकाय छे. ते अकर्ता छे, जे सर्वप्रदेशे कार्य भिन्नभिन्नपणे करे छे, अने जीवद्रव्य कर्ता छे. ते एक जीवना असंख्याता प्रदेश बधा मिलीने जाणवारूप कार्यने करे छे, ते सर्व प्रदेश मिल्या जाणपणो करी शके तेमाटे आठ प्रदेश निरावरणा छे पण केवलज्ञानमयी छे पण सर्व पदार्थ जाणी न शके जे आठ निर्मला पण असंख्याता सावरण. छे तेह प्रदेशे तो केवलज्ञानादिगुण अवराणा छे. ते प्रवृत्ति करी शकता नथी. आठ प्रदेशे सवे भाव जाणी शके नहीं. वली कोइ पूछस्येजे ए आठ प्रदेश निरावरण केम रह्या ? तेहनो उत्तर जे भगवती सूत्रे जे “एअइ वेअइ चलई फंदई से बंधई" ते जे प्रदेशचलपणे वर्ते ते बंधाये तेमाटे ए आठ प्रदेश निश्चल छे. तत्त्वार्थवृत्तौ "क्रियावत्वं पर्यायोपयोगिता प्रदेशाष्टकनिश्चलता एवंप्रकाराः संति भूयांसः" तथा भगवती सूत्रे अनादिअनंत संबंध कह्यो छे, तिणे ए आठ प्रदेश अचल छे, बीजा सर्व प्रदेश कटाहगत तेल उकालतां जिम तेल उपरनो नीचे आवे छे, नीचाथी उपर आवे छे तिम सर्व प्रदेश चली रह्या छे. प्रदेशने चलवे वीर्यनी चलता छे. जेकेइ एकला वीर्यनी चलता माने ते न घटे, जे द्रव्यनोक्षेत्र जे प्रदेश ते मुकीने गुणने अन्यक्षेत्रे जवो घटे नहीं, ए तत्त्वार्थकारनो आशय छे. तिहां कम्मपयडीमध्ये वीर्यविभागने अधिकारे आत्मप्रदेशे वीर्यनो तरतमपणो कह्यो छे. ते क्षयोपशमज ए रीते छे. परंकोइ प्रदेशनो वीर्यकोइ मध्ये आव्यो
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